रघुविन्द्र यादव के दोहे
मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश.
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश.
कुर्सी पर नेता लड़ें, रोटी पर इंसान.
मंदिर खातिर लड़ रहे, कोर्ट में भगवान.
बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धर्म, ईमान.
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान.
मंदिर, मस्जिद, चर्च पर, पहरे दें दरबान.
गुंडों से डरने लगे, कलियुग के भगवान्.
भगवा चोला धार कर, करते खोटे काम.
मन में तो रावण बसा, मुख से बोलें राम.
लोप धर्म का हो गया, बाधा पाप का भार.
केशव भी लेते नहीं, कलियुग में अवतार.
करें दिखावा भक्ति का, फैलाएं पाखंड.
मन का हर कोना बुझा, घर में ज्योति अखंड.
पत्थर के भगवान, को लगते छप्पन भोग.
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग.
फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर.
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर.
धर्म-कर्म की आड़ ले, करते हैं व्यापार.
फोटो, माला, पुस्तकें, बेचें बन्दनवार.
लेकर ज्ञान उधर का, बने फिरें विद्वान.
मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश.
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश.
कुर्सी पर नेता लड़ें, रोटी पर इंसान.
मंदिर खातिर लड़ रहे, कोर्ट में भगवान.
बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धर्म, ईमान.
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान.
मंदिर, मस्जिद, चर्च पर, पहरे दें दरबान.
गुंडों से डरने लगे, कलियुग के भगवान्.
भगवा चोला धार कर, करते खोटे काम.
मन में तो रावण बसा, मुख से बोलें राम.
लोप धर्म का हो गया, बाधा पाप का भार.
केशव भी लेते नहीं, कलियुग में अवतार.
करें दिखावा भक्ति का, फैलाएं पाखंड.
मन का हर कोना बुझा, घर में ज्योति अखंड.
पत्थर के भगवान, को लगते छप्पन भोग.
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग.
फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर.
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर.
धर्म-कर्म की आड़ ले, करते हैं व्यापार.
फोटो, माला, पुस्तकें, बेचें बन्दनवार.
लेकर ज्ञान उधर का, बने फिरें विद्वान.
पापी, कामी भी कहें, अब खुद को भगवान.
भगवा चोला धार कर, तिलक लगाया माथ.
सुरा, सुन्दरी योग है, सदा राखिये साथ.
तन पर भगवा सज रहा, मन में पलता भोग.
कसम वफ़ा की खा रहे, बिकने वाले लोग.
पाप ओर अन्याय पर, तोड़ें न जो मौन.
अपराधी वो कौम के, साध कहेगा कौन.
पहन मुखौटा धर्म का, करते दिनभर पाप.
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप.
कथा राम की बांचते, रावण के अवतार.
राम नाम की आड़ में, चले नित्य व्यापार.
मदिरा पीकर जो करें, माता का गुणगान.
ऐसे भक्तों का भला, कैसे हो कल्याण.
मंदिर, मस्जिद, चर्च में, हुआ नहीं टकराव.
पंडित, मुल्ला कर रहे, आये दिन पथराव.
पत्थर को हरि मान कर, पूज रहे नादान.
नर नारायण ताज रहे, फुटपाथों पर प्राण.
टूटी अपनी आस्था, बिखर गया विश्वास.
मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश.
खींचे जिसने उमरभर, अबलाओं के चीर.
सुरा, सुन्दरी योग है, सदा राखिये साथ.
तन पर भगवा सज रहा, मन में पलता भोग.
कसम वफ़ा की खा रहे, बिकने वाले लोग.
पाप ओर अन्याय पर, तोड़ें न जो मौन.
अपराधी वो कौम के, साध कहेगा कौन.
पहन मुखौटा धर्म का, करते दिनभर पाप.
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप.
कथा राम की बांचते, रावण के अवतार.
राम नाम की आड़ में, चले नित्य व्यापार.
मदिरा पीकर जो करें, माता का गुणगान.
ऐसे भक्तों का भला, कैसे हो कल्याण.
मंदिर, मस्जिद, चर्च में, हुआ नहीं टकराव.
पंडित, मुल्ला कर रहे, आये दिन पथराव.
पत्थर को हरि मान कर, पूज रहे नादान.
नर नारायण ताज रहे, फुटपाथों पर प्राण.
टूटी अपनी आस्था, बिखर गया विश्वास.
मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश.
खींचे जिसने उमरभर, अबलाओं के चीर.
वो भी अब कहने लगे, खुद को सिद्ध फ़कीर.
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