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विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Tuesday, June 28, 2011

नागफनी के फूल

दोहा संग्रह नागफनी के फूल से कुछ दोहे

गड़बड़ मौसम से हुई, या माली से भूल.
आँगन में उगने लगे, नागफनी के फूल.

लिखता  कैसे मीत मैं, सावन वाले गीत.
मानवता पर हो रही, दानवता की जीत.

चीख रही है द्रौपदी,  देख रहे सब मौन.
केशव गुंडों से मिले, लाज बचाए कौन.

भड़की नफरत की कभी, कभी पेट की आग.
दुखिया के दोनों मरे, बेटा और सुहाग.

मर्द-मर्द सब एक से, फर्क नहीं कुछ ख़ास.
रावण करते अपहरण, राम देत वनवास.

पल-पल मरने का यहाँ, फ़ैल गया है रोग.
बदलेंगे कैसे भला, दुनिया कायर लोग.

नए दौर ने कर दिए, धरमवीर लाचार.
जती-सती भूखे मारें, मौज करें बदकार.

कैसे होगी धर्म की, रामलला अब जीत.
रावण के दरबार में, बजरंगी भयभीत.

विद्वानों पर पड़ रहे, भारी बेईमान.
हंसों के दरबार में, कौवे दें, व्याख्यान.

हर दिन पैदा हो रहे, रावण कई हजार.
राम कहीं दीखते नहीं, कौन करे संहार.

साजिश है ये वक़्त की, या केवल संयोग.
नागों से भी हो गए, अधिक विषैले लोग.

हर कोई आज़ाद है, कैसा शिष्टाचार.
पत्थर को ललकारते. शीशे के औज़ार.

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