विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Saturday, November 12, 2011

दोहे

छोटे थे तब तो लड़े, मेरे हैं माँ-बाप.
बड़े हुए अब भी लड़े, तेरे हैं माँ-बाप.

घुट-घुट कर माँ मर गयी, पूछा कभी न हाल.
माता का अब जागरण, करते हैं हर साल.

तड़प रहा है खाट में, बूढा बाप गरीब.
बेटे बेगाने हुए, कैसा अजब नसीब.

माँ की ममता पर लिखे, बहुत मार्मिक लेख.
तड़प रही माँ गाँव में, कभी उसे भी देख||

बचे कहाँ अब शेष है,  दया धर्म ईमान|
पत्थर के भगवान् हैं, पत्थर के इंसान||

चोली धनिया की फटे, लोग करें उपहास|
बेटी धन्ना सेठ की, फिरती बिना लिबास||

-रघुविन्द्र यादव .

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