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Sunday, December 11, 2011

11 दिसंबर के दैनिक ट्रिब्यून में रघुविन्द्र यादव का दोहा

दैनिक ट्रिब्यून के 11 दिसंबर के अंक में 'नागफनी के फूल' का भी एक दोहा कोट किया गया है| 

संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार!

Posted On December - 11 - 2011

अपसंस्कृति के इस दौर में टेलीविजन जो कुछ हमारे घरों में परोसता आया है, वह किसी से छिपा नहीं है। सास-बहू के धारावाहिकों के नाम पर परिवार के भीतर कल्पित षड्यंत्रों को परोसने से जब चैनलों का मोह भंग हुआ तो तथाकथित ‘रियलिटी शो’ का दौर शुरू हुआ। जिसमें आम आदमी की संवेदनाओं से खेलने तथा चौंकाने वाला मसाला परोसकर टीआरपी बढ़ाने का खेल बदस्तूर जारी है। इस खेल का नया एपिसोड है बिग बॉस नामक धारावाहिक। इस धारावाहिक में चोर-लुटेरों से जघन्य अपराधों में लिप्त खलनायकों को नायक बनाने का खेल कई सालों से बदस्तूर जारी है। छल-कपट, धोखा, प्यार का प्रपंच, षड्यंत्र, पागलपन की हद तक लड़ाई-झगड़े, कलह, झूठ-फरेब जैसे कृत्यों को दर्शकों के समक्ष पेश करके विज्ञापन बटोरने का कृत्य चल रहा है। विवादों के सरताज इस कार्यक्रम में अमेरिका की अश्लील फिल्मों की तारिका भारतीय मूल की सन्नी लियोन की एंट्री से ताजा विवाद और गहरा गया है। भारतीय संस्कृति को तार-तार करने वाली पश्चिमी संस्कृति का रंग भारतीयों पर किस कदर गहरा रहा है, वह इस बात से पता चलता है कि सन्नी लियोन के बिग बॉस में आने के बाद उनकी अश्लील चित्रों की तलाश में विभिन्न साइटों को दो करोड़ से अधिक बार खंगाला गया। यह भयावह आंकड़ा बताता है कि अश्लील दृश्यों को तलाशने की भूख भारतीय समाज में किस कदर बढ़ रही है। शायद ऐसे ही हालात से दुखी होकर, टीवी द्वारा फैलायी जा रही अपसंस्कृति पर चर्चित कवि गोपालदास नीरज ने लिखा होगा :-
टीवी ने हम पर किया यूं छुप-छुप कर वार,
संस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार।
बिग बॉस में सन्नी लियोन की उपस्थिति को भले ही कार्यक्रम के आयोजकों तथा चैनल ने अपनी टीआरपी बढ़ाने का शार्टकट मान लिया हो, लेकिन जागरूक अभिभावक भी अपने बच्चों के भविष्य की चिंता को लेकर सक्रिय हुए हैं। उसकी उपस्थिति को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय भी खासा चिंतित है। लेकिन समाज के जागरूक लोगों खासकर किशोर-वय के बच्चों के अभिभावकों ने ब्रॉडकॉस्टिंग कंटेट कम्प्लेन काउंसिल (बीसीसीसी) को बड़ी संख्या में शिकायतें दर्ज कराई हैं कि बिग बॉस में सन्नी लियोन की उपस्थिति से बच्चों की मन:स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। उनकी शिकायत वाजिब है क्योंकि इंटरनेट पर सन्नी लियोन की शर्मसार करने वाली तस्वीरों की भरमार है। यदि अश्लील फिल्मों की कथित नायिका को भारतीय चैनलों द्वारा महिमामंडित किया जाए तो अभिभावक अपने बच्चों को पथभ्रष्ट होने से कैसे रोक पाएंगे? वास्तव में पश्चिमी खुले समाज में जिस नंगाई को सहजता से लिया जाता है, हमारा गरिमामाय समाज उसे सदा से नकारता रहा है। इंटरनेट नामक बेकाबू दैत्य उस ज़हर को अब धीरे-धीरे भारतीय समाज में उड़ेल रहा है जो कि हर भारतीय की चिंता का विषय है। इसके चलते किशोर पथभ्रष्ट हो रहे हैं और यौन-अपराधों का सिलसिला लगातार बढ़ रहा है। ऐसे हालातों पर तंज़ करते हुए डॉ. बलजीत लिखते हैं :-
पश्चिम का हम पर चढ़ा, ऐसा गहरा रंग,
उलट-पलट सब हो गए, रहन-सहन के ढंग।
वास्तव में सवाल बिग बॉस व सन्नी लियोन का ही नहीं है, टेलीविजन के अधिकांश कार्यक्रम प्रेम-प्रसंगों के नाम पर फूहड़ता व विवाहेत्तर संबंधों को महिमामंडित करने में लगे हैं। नारी आज़ादी की दुहाई देकर लिव-इन-रिलेशनशिप, समलैंगिक तथा विवाहेत्तर संबंधों को जैसे महिमामंडित विभिन्न धारावाहिकों में किया जा रहा है, वह बच्चों के दिलो-दिमाग में ज़हर घोल रहा है। लेकिन देश के नीति-नियंता खामोश बैठे हैं। पैसा कमाने की होड़ में चैनल किसी भी हद तक जा रहे हैं। पिछले दिनों आये ‘सच का सामना’ जैसे कार्यक्रमों में नानी-पोते वाले शख्स अपने अवैध संबंधों को ऐसे बता रहे थे जैसे उन्होंने कोई बड़ा बहादुरी का काम किया हो। पश्चिमी जीवनशैली पर तैयार किये गये कार्यक्रमों की भारत में नकल की जा रही है। लेकिन दोनों समाजों के स्वरूप में ज़मीन-आमसान का अंतर है। टीवी की इस अपसंस्कृति पर व्यंग्य करते हुए कवि डॉ. वी. सिंह लिखते हैं :-
इस कमरे में चल रहा, पति-पत्नी संवाद,
उसमें बच्चे चख रहे, ब्लू फिल्मों का स्वाद।
यह एक हकीकत है कि वैश्वीकरण व खुली अर्थव्यवस्था के नाम पर पश्चिमी देशों ने अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए जो हथकंडे अपनाये, उसके साथ पश्चिमी देशों की गंदगी भी हमारे समाज में घुल रही है। सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति के साथ उनकी अपसंस्कृति के वायरस हमारे तंत्र में घुल रहे हैं। इंटरनेट पर लाखों अश्लील साइटें देश में खोली जा रही हैं। मोबाइल-कंप्यूटर के जरिये वे लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच रही हैं। सोशल साइट्स के नाम पर इसका विस्तार घर-घर तक पहुंच रहा है। हो सकता है जो बात पश्चिम की खुली संस्कृति में स्वीकार्य हो, वह भारत में वर्जित हो। कुल मिलाकर रिश्तों की पवित्रता तथा यौन-शुचिता की भारतीय अवधारणा तार-तार हो रही है। देश पर हुए तमाम आक्रमणों ने भारतीय संस्कृति को उतना नुकसान नहीं पहुंचाया जितना पश्चिम की अपसंस्कृति ने पहुंचाया है। वे इंटरनेट व विभिन्न साइटों से मोटा कारोबार कर रहे हैं। वेलेंटाइनी संस्कृति हम पर थोप रहे हैं। यह उनका व्यापार है, लेकिन भारतीय संस्कृति पर मार है। यह भी एक हकीकत है कि अपसंस्कृति अभिजात्य व धनाढ्य वर्ग से नीचे की ओर चलती है। फिल्मी सितारों से लेकर धनाढ्य वर्ग खुलेपन की अपसंस्कृति को सर्वप्रथम अंगीकार करता है फिर उनकी देखादेखी उच्च व मध्यमवर्ग भी करने लगता है। इस सामाजिक विद्रूपता को बेनकाब करते हुए कवि रघुविंद्र यादव लिखते हैं :-
चोली धनिया की फटे, लोग करें उपहास,
बेटी धन्ना सेठ की, फिरती बिना लिबास।
वास्तव में बाज़ार आज हमारे जनजीवन में इतने गहरे उतर गया है कि समझना मुश्किल है कि कहां-कहां खेल है। देसी से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना कारोबार चलाने के लिए जो हथकंडे अपना रही हैं, उनको समझना जरूरी है। टीवी पर भी लोगों की संवेदनाओं से खेलने का जो खेल जारी है उस पर अंकुश लगाने के लिए कोई प्रभावी नियामक संस्था की आवश्यकता तत्काल महसूस की जा रही है। टीवी कार्यक्रम बनाने वाली कंपनियों से लेकर इंटरनेट तथा मोबाइल कंपनियों ने तो सिर्फ अपना कारोबार करना है। उनके नापाक मंसूबों को समझने की जरूरत है। बाज़ार के गणित की हकीकत बयां करते राजकुमार सचान होरी लिखते हैं :-
लैला-मजनूं कर रहे एसएमएस से मेल,
इश्क के संग-संग बढ़े कंपनियों की सेल।

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