ग़ज़ल
वफादार न रहे अब ज़माने में
क्यूँ लगे ही उसे आजमाने में
वो दर्द देकर चला जायेगा
सदियाँ लगेंगी उसे भुलाने में
जख्म प्यार का हो या अदावत का
आड़े आता है मुस्कुराने में
वही लोग आये हौसला देने
हाथ जिनका रहा घर जलाने में
किससे चुका है क़र्ज़ माँ बाप का
पसीना आ गया बिल चुकाने में
मुकर गया था जो अपने फ़र्ज़ से
सबसे आगे था हक जताने में
वफादार न रहे अब ज़माने में
क्यूँ लगे ही उसे आजमाने में
वो दर्द देकर चला जायेगा
सदियाँ लगेंगी उसे भुलाने में
जख्म प्यार का हो या अदावत का
आड़े आता है मुस्कुराने में
वही लोग आये हौसला देने
हाथ जिनका रहा घर जलाने में
किससे चुका है क़र्ज़ माँ बाप का
पसीना आ गया बिल चुकाने में
मुकर गया था जो अपने फ़र्ज़ से
सबसे आगे था हक जताने में
No comments:
Post a Comment