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Monday, April 9, 2012

दैनिक ट्रिब्यून 01-04-12 का सम्पाकीय

एक अप्रैल 2012 के दैनिक ट्रिब्यून का सम्पाकीय जिसमें 'नागफनी के फूल' का एक दोहा उद्दृत किया गया है|

बिटिया को महंगा लगे माथे का सिंदूर

Posted On March - 31 - 2012

गैर-ब्रांडेड आभूषणों पर एक फीसदी उत्पाद शुल्क और सोने के आयात शुल्क को दोगुना किये जाने के खिलाफ सर्राफा कारोबारी दो सप्ताह से आंदोलनरत हैं। देशव्यापी बंद-धरने-प्रदर्शन और कैंडल मार्च जैसे उपक्रमों से व्यापारी सरकार पर दबाब बनाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। सर्राफ कारोबारी इस मुद्दे पर आंदोलनरत तो हैं लेकिन हकीकत यह है कि इसका खमियाजा आम आदमी ही भुगतेगा। हो सकता है कि उच्चवर्ग, कारोबारियों तथा कालेधन के पुजारियों के लिए सोना निवेश का अचूक साधन हो, लेकिन उस गरीब की तो मजबूरी है जिसे अपनी बिटिया के हाथ पीले करने हैं। इस हड़ताल से बाजार ठप्प पड़े हैं, ऐसे में उस बाप पर क्या बीत रही होगी, जिसकी बेटी की सगाई या शादी हाल-फिलहाल होने वाली है? ऐसा नहीं है कि महानगरों में ही सर्राफा बाजार बंद हों, अब तो छोटे शहरों व कस्बों में भी सर्राफा कारोबारी इस आंदोलन का हिस्सा बन चुके हैं। देश के संवेदनशील शासकों ने यह कभी नहीं सोचा कि उत्पाद शुल्क में वृद्धि व आपातशुल्क दुगना करने से गरीब व आम तबका बेटी कैसे बयाहेगा। हिंदू संस्कृति में सोना संस्कार है और अमीर-गरीब बेटी को अपनी हैसियत से सोना अवश्य देते हैं। कोई प्रतीकात्मक रूप में तो कोई दिखावे के साथ। लेकिन अब लगता है कि केंद्र सरकार की नीतियों के चलते आम आदमी को बेटी का विवाह करना महंगा साबित होगा। जैसा कवि अशोक अंजुम लिखता भी है :-
सौदागर इस देश के, रहते मद में चूर,
बिटिया को महंगा लगे, माथे का सिंदूर।
यह पूरे देश में पहला मौका होगा कि सारे सर्राफा-कारोबार एक साथ, इतने लंबे समय के लिए बंद हुए हों। ऐसे में आभूषणों एवं अन्य उत्पादों के लिए उपभोक्ता शहर-शहर खाक छानते फिर रहे हैं। उनकी परेशानी का महसूस करना कठिन है। सेंट्रल एक्साइज की पेचीदगियां और कस्टम शुल्क बढ़ाने की तिकड़मों से तो आम आदमी अनजान है लेकिन इतना तो तय है कि इन ड्यूटियों के लगने से ग्राहकों को अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा। सरकार तो गणित लगाकर बैठी है कि उत्पाद शुल्क बढ़ाने से उसे 100 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। लेकिन उसे इस बात का अहसास नहीं है कि हाशिये पर खड़े आदमी की मुश्किलें कितनी बढ़ जाएंगी। गैर-ब्रांडेड आभूषणों पर एक फीसदी उत्पाद शुल्क के अलावा सोने की छड़, सिक्के और प्लेटिनम पर आयात शुल्क दो से बढ़ाकर चार फीसदी करने से आशंका जताई जा रही है कि खुदरा कीमतों में छह फीसदी तक का इजाफा हो सकता है, जिसकी कीमत न सरकार चुकाएगी और न ही सर्राफा बाज़ार, चुकाएगा तो आम आदमी, पिसना जिसकी नियति है। ऐसे में आम आदमी के दर्द को कवि विपिन सुनेजा ‘शायक’ ने कुछ शब्द दिये हैं :-
बाज़ार बढ़ गये हैं, रौनक भी बढ़ गई है,
रोता हुआ मिला है अकसर कबीर अब भी।
यह समझ से परे है कि देश कौन चला रहा है, हमारे प्रतिनिधि या विश्व बैंक व पश्चिमी देशों द्वारा संचालित अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं। भारत में दुनिया का सबसे अधिक सोना होने की खबरें पिछले दिनों प्रकाशित हुई थीं। इसकी वजह यह है कि सोना हमारे संस्कार में है। भारतीय जनमानस को शेयर मार्केट में विश्वास न रहा तो सोने में निवेश करना शुरू हुआ। ये शेयर बाज़ार संचालित करने वाले शातिर लोगों को रास नहीं आया। यदि सोना महंगा होगा तो लोग शेयर बाज़ार में निवेश करेंगे। लेकिन लगता नहीं ऐसा होगा। जनता को अभी तक वह रहस्य नहीं पता कि बराक ओबामा को छींक आने से शेयर बाजार क्यों धराशायी हो जाता है। लेकिन सवाल यह है कि सरकार काले धन को देश में लाने की ईमानदार कोशिशें क्यों नहीं करती? इस पैसे को भी तो शेयर बाजार में निवेश करके विश्व व्यापार घाटे को पूरा किया जा सकता है। देश को लूटकर विदेश में निवेश करने वालों को लूट की छूट देने वाली सरकारों को उलाहना देते हुए रघुविंद्र यादव कहते हैं :-
दौलत लूटी देश की, कर दी जमा विदेश,
गैरों से नेता कहे, आओ करो निवेश।
वास्तव में केंद्र सरकार विदेशी व्यापार घाटे को कम करने तथा शेयर बाजार को चमकाने के लिए पीली धातु के आयात पर शुल्क लगा रही है। सरकार मानती है कि विदेशी व्यापार में होने वाले घाटे का अहम कारण बड़ी मात्रा में सोने का आयात किया जाना है जिसके लिए बहुत अधिक विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है। सरकार सोचती है कि सोना महंगा होगा तो निवेश शेयर बाजार में होगा। इससे घरेलू बाजार में पैसे की तंगी कम होगी। यही वजह है कि जनवरी में सोने पर आयात शुल्क तीस रुपये प्रतिग्राम से बढ़ाकर दो फीसदी, तदुपरांत बजट में दो से चार फीसदी कर दिया गया। लेकिन इस संवेदनहीन सरकार को कौन समझाए कि सोना बाजार का ही अवयव नहीं है, वह भारतीय संस्कारों में रचा-बसा है। वह अपरिहार्य आवश्यकता भी है। शायद कुर्सी पर बैठे धृतराष्ट्रों को कवि की इन पंक्तियों से कुछ अहसास हो :-
खून पसीना जोड़कर, ले दहेज के साथ,
बिटिया के करने चला, दुखिया पीले हाथ।

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