बरखा रानी नाम तुम्हारे
बरखा रानी! नाम तुम्हारे,
निस दिन मैंने छंद रचे।
रंग-रंग के भाव भरे,
सुख-दुख के आखर चंद रचे।
पाला बदल-बदल कर मौसम,
रहा लुढ़कता इधर उधर।
कहीं घटा घनघोर कहीं पर,
राह देखते रहे शहर।
कहीं प्यास तो कहीं बाढ़ के,
सूखे-भीगे बंद रचे।
कभी वादियों में सावन के,
संग सुरों में मन झूमा।
कभी झील-तट पर फुहार में,
पाँव-पाँव पुलकित घूमा।
कहीं गजल के शेर कह दिये,
कहीं गीत सानंद रचे।
कभी दूर वीरानों में,
गुमनाम जनों के गम खोदे।
अतिप्लावन या अल्प वृष्टि ने,
जिनके सपन सदा रौंदे।
गाँवों के पैबंद उकेरे,
शहर चाक-चौबन्द रचे।
-कल्पना रामानी
निस दिन मैंने छंद रचे।
रंग-रंग के भाव भरे,
सुख-दुख के आखर चंद रचे।
पाला बदल-बदल कर मौसम,
रहा लुढ़कता इधर उधर।
कहीं घटा घनघोर कहीं पर,
राह देखते रहे शहर।
कहीं प्यास तो कहीं बाढ़ के,
सूखे-भीगे बंद रचे।
कभी वादियों में सावन के,
संग सुरों में मन झूमा।
कभी झील-तट पर फुहार में,
पाँव-पाँव पुलकित घूमा।
कहीं गजल के शेर कह दिये,
कहीं गीत सानंद रचे।
कभी दूर वीरानों में,
गुमनाम जनों के गम खोदे।
अतिप्लावन या अल्प वृष्टि ने,
जिनके सपन सदा रौंदे।
गाँवों के पैबंद उकेरे,
शहर चाक-चौबन्द रचे।
-कल्पना रामानी
हार्दिक आभार आदरणीय रघुविंदर जी
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