प्यासी धरती/ खग दुखित रोते/ बढ़ती भूख।
मिटते प्राणी/ है चकित नाहर/ घटा रसूख॥
घिरा अँधेरा/ डर नहीं मनुज/ जला ले दीप।
छले न जाना/ ध्यान से पग धर/ लक्ष्य समीप॥
सावन आया/ खिल उठी बगिया/ मस्त मयूर।
जगी उमंगें/ प्रीत की रिमझिम/ चढ़ा सुरूर॥
हाय गरीबी/ नोंचती तन-मन/ करे हताश।
जला न चूल्हा/ रो पड़े बरतन/ बुझती आस॥
-कुमार गौरव अजीतेन्दु
शाहपुर, दानापुर (कैन्ट)
पटना - ८०१५०३
बिहार
मिटते प्राणी/ है चकित नाहर/ घटा रसूख॥
घिरा अँधेरा/ डर नहीं मनुज/ जला ले दीप।
छले न जाना/ ध्यान से पग धर/ लक्ष्य समीप॥
सावन आया/ खिल उठी बगिया/ मस्त मयूर।
जगी उमंगें/ प्रीत की रिमझिम/ चढ़ा सुरूर॥
हाय गरीबी/ नोंचती तन-मन/ करे हताश।
जला न चूल्हा/ रो पड़े बरतन/ बुझती आस॥
-कुमार गौरव अजीतेन्दु
शाहपुर, दानापुर (कैन्ट)
पटना - ८०१५०३
बिहार
मेरी रचना को पत्रिका में स्थान देने के लिए "विविधा" का हृदय से आभार.......
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