आजादी है नाम की, नाम मात्र गणतंत्र ।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।।
हुआ मान सम्मान का, बंधन भी कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।।
मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।।
नारी को नर से मिले, प्रेम मान सम्मान ।
मन से मेरी कामना, पूर्ण करें भगवान ।।
मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों में भगवान ।।
उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।
नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।
नव युग पीढ़ी प्रेम का, करने लगी हिसाब ।
हाँ ना के इस खेल में, लुटता गया गुलाब ।।
जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।।
तप तप के जब धूप में, धरा हुई बेचैन ।
तब मेघों ने वस्तुतः, खोले अपने नैन ।।
भर भर गगरी प्रेम से, मेघ बुझाता प्यास ।
त्रिषित धरा का अंततः, टूटा है उपवास ।।
अनहितकारी न्यूनता, सूखे जंगल खेत ।
खड़ी अधिकता भी लिए, संकट के संकेत ।।
सरस सहज सुन्दर सरल, मधुबन सी मुस्कान ।
इस पृथ्वी पर एक तुम, सुन्दरता की खान ।।
गहरे सागर से अधिक, सुन्दर निश्चल नैन ।
जहाँ डूबने से मिले, व्याकुल मन को चैन ।।
उलझन मुश्किल वेदना, से निर्मित यह खेल ।
खुशियाँ बंधक प्रेम में, अरमानों को जेल ।।
कठिन वेदना की घड़ी, या दुख की बरसात ।
अम्बर के जैसे अडिग, खड़े सदा हैं तात ।।
सरोकार भगवान से, रखते जो दिन रैन ।
सुखमय जीवन सर्वदा, मिलता है सुख चैन ।।
सदाचार व्यवहार का, समय गया है बीत ।
दौलत जिसकी जेब में, उसकी होती जीत ।।
व्यापित केवल देश में, पाप लोभ षड़यंत्र ।।
हुआ मान सम्मान का, बंधन भी कमजोर ।
बढ़ता जाता है मनुज, स्वयं पतन की ओर ।।
मानव मस्ती मौज औ, मय की मद में चूर ।
अपने ही करने लगे, जख्मों को नासूर ।।
नारी को नर से मिले, प्रेम मान सम्मान ।
मन से मेरी कामना, पूर्ण करें भगवान ।।
मन से सच्चा प्रेम दें, समझें एक समान ।
बालक हो या बालिका, दोनों में भगवान ।।
उत्तम शिक्षा सभ्यता, भले बुरे का ज्ञान ।
जीवन की कठिनाइयाँ, करते हैं आसान ।।
नित सिखलायें नैन को, मर्यादा सम्मान ।
हितकारी होते नहीं, क्रोध लोभ अभिमान ।।
नव युग पीढ़ी प्रेम का, करने लगी हिसाब ।
हाँ ना के इस खेल में, लुटता गया गुलाब ।।
जीवन भर मजबूरियां, मेरे रहीं करीब ।
सिल ना पाया मैं कभी, अपना फटा नसीब ।।
तप तप के जब धूप में, धरा हुई बेचैन ।
तब मेघों ने वस्तुतः, खोले अपने नैन ।।
भर भर गगरी प्रेम से, मेघ बुझाता प्यास ।
त्रिषित धरा का अंततः, टूटा है उपवास ।।
अनहितकारी न्यूनता, सूखे जंगल खेत ।
खड़ी अधिकता भी लिए, संकट के संकेत ।।
सरस सहज सुन्दर सरल, मधुबन सी मुस्कान ।
इस पृथ्वी पर एक तुम, सुन्दरता की खान ।।
गहरे सागर से अधिक, सुन्दर निश्चल नैन ।
जहाँ डूबने से मिले, व्याकुल मन को चैन ।।
उलझन मुश्किल वेदना, से निर्मित यह खेल ।
खुशियाँ बंधक प्रेम में, अरमानों को जेल ।।
कठिन वेदना की घड़ी, या दुख की बरसात ।
अम्बर के जैसे अडिग, खड़े सदा हैं तात ।।
सरोकार भगवान से, रखते जो दिन रैन ।
सुखमय जीवन सर्वदा, मिलता है सुख चैन ।।
सदाचार व्यवहार का, समय गया है बीत ।
दौलत जिसकी जेब में, उसकी होती जीत ।।
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