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विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Sunday, October 25, 2015

पीयूष द्विवेदी 'पूतू' के दोहे

वंशवाद होता जहाँ, इतना रखना ध्यान।
प्रतिभा घुट-घुटकर मरे, उल्लू पाएँ मान॥

अंग्रेजी हावी हुई, हिंदी है बदहाल।
देश निकाला दे रहे, माँ को अपने लाल॥

इक विधवा की जिंदगी, होती नरक समान।
घर-बाहर घुट-घुट जिए, सहे सदा अपमान॥

सड़के बनतीँ वर्ष भर, फिर भी खस्ताहाल।
करके बंदरबाँट सब, होते मालामाल॥

शिक्षा लेना हो गया, काम बड़ा आसान।
घर बैठे डिग्री मिले, अगर आप धनवान॥

देख दशा माँ गंग की, बहते मेरे नैन।
गंदा नाला क्यों बनी, सोच रहा दिन-रैन॥

कहीं सुरक्षित हैं नहीं, पंचायत-बाजार।
सहमी-सहमी लड़कियाँ, छाप रहें अखबार॥

-पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'


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