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विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Sunday, October 4, 2015

दोहे - महेन्द्र कुमार वर्मा

दर्पण को मत कोसना, दर्पण है नादान|
हरदम सच कहता फिरे, खुद को तू पहचान||

जो खोया वो भूल जा, सुन जीवन का सार|
पाता है मानव यहॉ, करनी के अनुसार||

जीवन में सुख जोड़ ले, घटा दुखों की मार|
सबसे मिल के रह सदा, जीवन के दिन चार||

अनायास गर सुख मिले, मत जाना दुख भूल|
हॅसता हुआ गुलाब भी, खिले नहीं बिन शूल||

कहती है ये जिन्दगी, कर थोड़ा उपकार|
देने से घटते नहीं, विद्या और विचार||

कलम कभी तलवार है, कलम कभी है ढाल|
कलम सामने मौन हैं, सारे गूढ़ सवाल||

जीवन में कुछ सुख मिले, और मिले संताप|
जैसे ही इक सुख मिला, जागा मन में पाप||

सच्चाई का जगत में, होता नही विकल्प|
राह झूठ के हैं कई, पर मंजिल हैं अल्प||

धोखेबाजों पर कभी, करना मत विश्वास|
इनकी मीठी बात में, होता विष का वास||

इक दीपक लड़ता रहा, तम से सारी रात|
जो कोशिश करते नहीं, पाते हरदम मात||

मनुज बहुत कमजोर है, मनुज बहुत लाचार|
मनुज मनुज पर ही करे, हरदम अत्याचार||

जब चलती सच की नदी, बहती अविरल धार|
चट्टानों को चीरती, नहीं मानती हार||
 
जीवनपथ पर मिल रहा, हिचकोलों का प्यार|
हो सपाट गर जिन्दगी, जीने का क्या सार||

सच कहना आसान है, पर वह सच मत बोल|
जो कटुता से हो भरा, लगे जहर का घोल||
 
सीखो भाषा प्यार की, होती है आसान|
इसमें नैना बोलते, रहती मूक जुबान||

जीवन के हर मोड़ पे, आते हैं व्यवधान|
कोई उनसे जूझता, कोई करे निदान||

आसानी से कुछ नही, मिलता मेरे मीत|
या तो उसे खरीद लो, या लो उसको जीत||

 - महेन्द्र कुमार वर्मा

भोपाल 
मो.9893836328

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