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Saturday, October 17, 2015

प्रियंका पाण्डेय के दोहे

प्रथम पूज्य गणराज हैं, वंदन करूं गणेश। 
मंगल करो विपदा हरो, सुधि लीजो प्रथमेश।।

हंसती चंचंल रश्मियां, ले आईं नव भोर। 
जाग रहे अब फूल तो, पंछी करते शोर।।

बिखरी प्यारी रोशनी, पंछी गाते गीत। 
अधरों पर मुस्कान है, सांसों में संगीत।।

कुहरे में चमकी किरन, क्षितिज हो गया लाल। 
सूरज दादा आ रहे, ओढ रेशमी शाल।।

गाएं सब चरने लगीं, पग से उडती धूल। 
आसमान के भाल पर, सजता अक्षत फूल।।

जोत कलश लेकर चली, लाई नवल प्रभात। 
आकर ऊषा सुंदरी, दे जाती सौगात।।

होता है दिन रात में, कैसा ये संबंध |
य़े आता वो जा रहा, अनुपम यह अनुबंध।।
 
 नीच काज की लौ सदा, होती बडी प्रचंड। 
जल जाते सदकर्म सब, ईश्वर देता दंड ।।
 
मीठी वाणी बोलिए, आतुर रहते प्राण। 
शूल बने उर में चुभें, सदा व्यंग के बाण ।।
 
धन के मद में चूर हो,जातक अंधा होय। 
पर जब खाली हाथ हो, साथ दिखे नहिं कोय ।।

दंभ लोभ माया सभी, पंथ नरक के होय। 
फैले यह विषबेल ज्यों,बचा सके नहिं कोय।।

कडवी वाणी बोलते, उगलें मुख से आग। 
मानुष का बस तन धरा, उनसे मीठे काग।।
 
जिन हाथों में खेल के, जानी जग की रीत। 
उनसे संध्या काल में, कम मत करना प्रीत।।

जिन हाथों के पालने, थके नहीं दिन रैन। 
वो ही ढलती आयु में, खोजें मीठे बैन।।

निशा चंद्र का हो मिलन, तारें दें सौगात। 
पुलकित होती चांदनी, झिलमिल करती रात।।
 
झिलमिल करते दीप ज्यों, मोती जडे हजार। 
तारों की यह रोशनी, कुदरत का श्रंगार।।
 

-प्रियंका पाण्डेय 

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