विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Friday, January 1, 2016

गुरु सच्चे भगवान् रे

अरे अकल से अंधे मानव
आँख खोल पहचान रे
गुरु से बड़ा नहीं है कोई 
गुरु सच्चे भगवान् रे..........

गुरु ज्ञान के दीप जलाये
जीवन पथ का तिमिर भगाये
अंतस की आँखों को खोले
परमपिता का दरश कराये
गुरु ज्ञान का अतुलित सागर
गुरु करे कल्याण रे.......

रख दृढ़ता विश्वास गुरू में
उर श्रृद्धा का भाव गुरु में
गुरु की कृपा तरे नर भव से
महा कृपा आगार गुरु में
राम-कृष्ण ने गुरु को पूजा
जग में गुरू महान रे......

गुरु ब्रह्मा है गुरु महेश है
गुरु विष्णु है गुरु शेष है
गुरु शारदा गुरु माँ अम्बे
परम ब्रहम है गुरु वेश में 
गुरु में देवलोक है पूरा
गुरु में सकल जहान रे....

गुरु वाणी में अमृत धारा
गुरू कृपा ने सबको तारा
गुरु ही तीन लोक के स्वामी
ताबिश गुरु लोक है न्यारा
छोडि सकल जंजाल जगत के
धरो गुरु का ध्यान रे......

-आचार्य राकेश बाबू 'ताबिश' 

निकट द्वारिकापुरी कोटला रोड, मंड़ी समिति के सामने
फिरोजाबाद 

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