जुगनू कहता दीप से, बजा-बजाकर तूर्य।
अपने-अपने क्षेत्र के, हम दोनों हैं सूर्य।।
तुम आये थे स्वप्र में, कहने अपनी बात।
हमने खोले होंठ जब, तभी ढल गई रात।।
शब्दों की जादूगरी, श्लेष, यमक, अनुप्रास।
इतने भूषण लादकर, कविता हुई उदास।।
अपने-अपने क्षेत्र के, हम दोनों हैं सूर्य।।
तुम आये थे स्वप्र में, कहने अपनी बात।
हमने खोले होंठ जब, तभी ढल गई रात।।
शब्दों की जादूगरी, श्लेष, यमक, अनुप्रास।
इतने भूषण लादकर, कविता हुई उदास।।
भाषा में जब से मिला, बिम्बों का नेपथ्य।
काव्यमंच पर नाचते, नंगे होकर तथ्य।।
काव्यमंच पर नाचते, नंगे होकर तथ्य।।
खींच रहा क्यों रेत पर, तू पानी की रेख।
सच्चे दिल से भी कभी, हमें बुलाकर देख।।
सच्चे दिल से भी कभी, हमें बुलाकर देख।।
क्या तूने भी था किया, सच्चे दिल से प्यार।
या हमदर्दी की रही, सिर्फ तुझे दरकार।।
या हमदर्दी की रही, सिर्फ तुझे दरकार।।
हंस इन दिनों बन गए, बगुलों के उपमान।
पटबिजनों के संग हुआ, सूरज का गुणगान।।
पटबिजनों के संग हुआ, सूरज का गुणगान।।
कहाँ-कहाँ मन उम्रभर, भटका आठों याम।
कहाँ मालवी रात वो, कहाँ अवध की शाम।।
कहाँ मालवी रात वो, कहाँ अवध की शाम।।
शहनाई बजती रही, कहीं रातभर दूर।
और हमें करती रही, रोने को मजबूर।।
और हमें करती रही, रोने को मजबूर।।
झूठे रिश्तों को लिया, क्यों हमने सच मान?
कब हम सच्चे मित्र की, कर पाये पहचान।।
0120-4334873
कब हम सच्चे मित्र की, कर पाये पहचान।।
-देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र'
10/61, राजेन्द्र नगर, साहिबाबाद0120-4334873
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