विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Sunday, June 5, 2016

अधरों पर मुस्कान - अंसार 'कम्बरी'

मन से जो भी भेंट दे, उसको करो कबूल।
काँटा मिले बबूल का, या गूलर का फूल।।
सागर से रखती नहीं, सीपी कोई आस।   
एक स्वाति की बूँद से, बुझ जाती है प्यास।।
प्यासे के जब आ गयी, अधरों पर मुस्कान।
पानी-पानी हो गया, सारा रेगिस्तान।।
रातों को दिन कह रहा, दिन को कहता रात।
जितना ऊँचा आदमी, उतनी नीची बात।।
जब तक अच्छा भाग्य है, ढके हुये हैं पाप। 
भेद खुला हो जायेंगे, पल में नंगे आप।।
तुम्हें मुबारक हो महल, तुम्हें मुबारक ताज। 
हम फकीर हैं 'कम्बरी', करें दिलों पर राज।।
हमको ये सुविधा मिली, पार उतरने हेतु।
नदिया तो है आग की, और मोम का सेतु।।
पंछी चिंतित हो रहे, कहाँ बनायें नीड़।   
जंगल में भी आ गयी, नगरों वाली भीड़।।
जाने कैसी हो गयी, है भौरों से भूल।  
कलियाँ विद्रोही हुयीं, बा$गी सारे फूल।।
हवा ज़रा सी क्या लगी, भूल गयी औकात।
पाँवों की मिट्टी करे, सर पर चढक़र बात।।

-अंसार 'कम्बरी'

ज़फर मंजि़ल,11/116,
ग्वाल टोली, कानपुर

No comments:

Post a Comment