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Saturday, June 4, 2016

छान रहीं फुटपाथ - डॉ अजय जनमेजय

रेखाएँ ये भाग्य की, लायीं कैसी साथ।
नन्हीं जान हथेलियाँ, छान रहीं फुटपाथ।।

बिना तुम्हारे नींद कब, बिना नींद कब चैन।
इक सपना भीगा किया, फँसकर गीले नैन।।

हमीं सुनाने लग गए, बदल-बदल कर तथ्य।
जुटा न पाए हौसला, कह सकते थे सत्य।।
 
तुम बिन जब तनहा रहा, तब-तब मेरे द्वार।
आँधी आयी पीर की, लेकर गर्द-गुबार।।

चुप्पी का पुल बीच में, हम दोनों दो छोर।
ऊपर से खामोश थे, अन्दर अन्दर शोर।।

तन देकर उसने हमें, देदी पूँजी साँस।
द्वेष, मोह की कील खुद, हमने रक्खी फाँस।।
 
ओरों को तकलीफ दे, रहा कौन आबाद।
पहले सूरज खुद तपा, तपी धरा फिर बाद।।

जब-जब देखूँ आइना, दिखे न अपना रूप।
ये मैं कैसी डाह में, जलकर हुआ कुरूप।।

आओगे तुम तय हुआ, कर के देर सबेर।
सौन चिरैया फिर दिखी, मन की आज मुंडेर।।

साँस-साँस सोचा यही, आओगे इस बार।
खामोशी बुनती रही, जाले मन के द्वार।।

-डॉ अजय जनमेजय 

417 रामबाग कालोनी,
सिविल लाइन्स, बिजनौर

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