हाथ पाँव चलते रहें, चलता रहे शरीर।
ये मदिर सी देह ही, तेरी है ज़ागीर।।
अम्मा है घर की हँसी, अम्मा से घर बार।
अम्मा बजता साज है, कसा हुआ हर तार।।
मौलसिरी हँसती रही, मुरझा गए कनेर।
चकला बेलन पूछते, कैसे हो गई देर।।
कागज पीले हो गए, ताजे फिर भी बोल।
प्यार प्रीत की चि_ियाँ, जब चाहे तब खोल।।
बहुत बड़ा दिल चाहिए, करने को गुणगान।
अकसर ओछों ने किया, सद्गुण का अपमान।
खण्ड-खण्ड उत्तर हुए, प्रश्न रह गए मौन।
जब आहत हैं देवता, उत्तर देगा कौन।।
साँसे जब तक साथ थीं, सब ने बाँटी प्रीत।
धू-धू जलता छोडक़र, लौट गए सब मीत।।
छोटे-बड़े न देवता, छोटी बड़ी न रीत।
घर बैठे भगवान से, करके देखो प्रीत।।
क्या मैं सबको बाँट दूँ, क्या मैं रक्खूँ पास।
इस दुनिया ने जानकर, तोड़ा हर विश्वास।।
माँग भरी, आँखें भरी, भरे चूडिय़ों हाथ।
साजन की देहरी मिली, छूटा सबका साथ।।
ठाकुर विलेज, कांदिवली (पूर्वी), मुंबई-400101
ये मदिर सी देह ही, तेरी है ज़ागीर।।
अम्मा है घर की हँसी, अम्मा से घर बार।
अम्मा बजता साज है, कसा हुआ हर तार।।
मौलसिरी हँसती रही, मुरझा गए कनेर।
चकला बेलन पूछते, कैसे हो गई देर।।
कागज पीले हो गए, ताजे फिर भी बोल।
प्यार प्रीत की चि_ियाँ, जब चाहे तब खोल।।
बहुत बड़ा दिल चाहिए, करने को गुणगान।
अकसर ओछों ने किया, सद्गुण का अपमान।
खण्ड-खण्ड उत्तर हुए, प्रश्न रह गए मौन।
जब आहत हैं देवता, उत्तर देगा कौन।।
साँसे जब तक साथ थीं, सब ने बाँटी प्रीत।
धू-धू जलता छोडक़र, लौट गए सब मीत।।
छोटे-बड़े न देवता, छोटी बड़ी न रीत।
घर बैठे भगवान से, करके देखो प्रीत।।
क्या मैं सबको बाँट दूँ, क्या मैं रक्खूँ पास।
इस दुनिया ने जानकर, तोड़ा हर विश्वास।।
माँग भरी, आँखें भरी, भरे चूडिय़ों हाथ।
साजन की देहरी मिली, छूटा सबका साथ।।
-शैलजा नरहरि
आर्किड -एच, वैली ऑफ क्लावर्सठाकुर विलेज, कांदिवली (पूर्वी), मुंबई-400101
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