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Saturday, June 4, 2016

प्यासा पानी से मरे - शशिकांत गीते

अपना सब कुछ आज जो, कल जाएगा डूब|
प्यासा पानी से मरे, ये किस्सा भी खूब ||

अगुआ सारे व्यस्त हैं, झंझट लेगा कौन|
रजधानी  में बज रहा, खन-खन करता मौन||


पैसे से पैसा बना, सटका धन्ना सेठ|
भूखे, भूखे ही रहे, हाथों टूटी प्लेट||


पानी तो आया नहीं, डूब गए संबंध|
बातों से आने लगी, मारकाट की गंध||

कैसा रोना पीटना, कैसा हाहाकार|
नई सदी की नीव के, तुम हो पत्थर यार||

सूख गई है मंजरी, कटे किनारे पेड़|
प्यास किनारे पर पड़ी, उठती हृदय घुमेड||

सड़कें ही क्या जिन्दगी, अपनी खस्ता हाल|
पानी, बिजली भूख के, थककर चूर सवाल||

बड़ा कठिन है तैरना, धारा के विपरीत|
कूड़ा बहता धार में, तू धारा को जीत||

लोकतंत्र के नाम पर, कंप्यूटर रोबोट|
बटन दबे औ छापते, पत-पत अपने वोट||

-शशिकांत गीते
खण्डवा, मध्यप्रदेश

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