अपना सब कुछ आज जो, कल जाएगा डूब|
प्यासा पानी से मरे, ये किस्सा भी खूब ||
अगुआ सारे व्यस्त हैं, झंझट लेगा कौन|
रजधानी में बज रहा, खन-खन करता मौन||
पैसे से पैसा बना, सटका धन्ना सेठ|
भूखे, भूखे ही रहे, हाथों टूटी प्लेट||
पानी तो आया नहीं, डूब गए संबंध|
बातों से आने लगी, मारकाट की गंध||
कैसा रोना पीटना, कैसा हाहाकार|
नई सदी की नीव के, तुम हो पत्थर यार||
सूख गई है मंजरी, कटे किनारे पेड़|
प्यास किनारे पर पड़ी, उठती हृदय घुमेड||
सड़कें ही क्या जिन्दगी, अपनी खस्ता हाल|
पानी, बिजली भूख के, थककर चूर सवाल||
बड़ा कठिन है तैरना, धारा के विपरीत|
कूड़ा बहता धार में, तू धारा को जीत||
लोकतंत्र के नाम पर, कंप्यूटर रोबोट|
बटन दबे औ छापते, पत-पत अपने वोट||
-शशिकांत गीते
खण्डवा, मध्यप्रदेश
प्यासा पानी से मरे, ये किस्सा भी खूब ||
अगुआ सारे व्यस्त हैं, झंझट लेगा कौन|
रजधानी में बज रहा, खन-खन करता मौन||
पैसे से पैसा बना, सटका धन्ना सेठ|
भूखे, भूखे ही रहे, हाथों टूटी प्लेट||
पानी तो आया नहीं, डूब गए संबंध|
बातों से आने लगी, मारकाट की गंध||
कैसा रोना पीटना, कैसा हाहाकार|
नई सदी की नीव के, तुम हो पत्थर यार||
सूख गई है मंजरी, कटे किनारे पेड़|
प्यास किनारे पर पड़ी, उठती हृदय घुमेड||
सड़कें ही क्या जिन्दगी, अपनी खस्ता हाल|
पानी, बिजली भूख के, थककर चूर सवाल||
बड़ा कठिन है तैरना, धारा के विपरीत|
कूड़ा बहता धार में, तू धारा को जीत||
लोकतंत्र के नाम पर, कंप्यूटर रोबोट|
बटन दबे औ छापते, पत-पत अपने वोट||
-शशिकांत गीते
खण्डवा, मध्यप्रदेश
No comments:
Post a Comment