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विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Thursday, August 11, 2016

मास्टर रामअवतार शर्मा के दोहे

नाहर हिंसक है बड़ा, सबका करे शिकार|
पर नर को मत आँकिए, उससे कम खूंखार||

करते नहीं हैं पंच भी, आज न्याय की बात|
सजा मिले निर्दोष को, हो चौतरफा घात||

बहुत सुना संसार से, है उसके घर न्याय|
वापस आ इस तथ्य को, देगा कौन बताय||

जगे रात भर प्यार में, तके  चाँद की ओर|
मगर चाँद को क्या पता, सहता विरह चकोर||

एक तरफ के प्यार में, होता है यह हाल|
मरे पतंगा प्यार में, खुद को लौ में डाल||

बने बहाना मौत का, नहीं किसी का जोर|
आता काल सियार का, चले गाँव की ओर||

दोहे में गंगा बहे, बहती यमुना धार|
ज्यों-ज्यों यह आगे बढे, त्यों-त्यों हो विस्तार||

-मास्टर रामअवतार शर्मा
गुढ़ा (महेंद्रगढ़)


 

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