पिता का
यूँ चले जाना
जैसे
आँगन के दरख्त का
सूख जाना
जैसे
तपती धरा से
बादल का
रूठ जाना
जैसे
चहचहाते पंछियों का
मौन हो जाना
जैसे
जगमगाते दीप का
बुझ जाना
जैसे
चलायमान वक्त का
रूक जाना
जैसे
घर की छत का
ढह जाना
जैसे
भरे संसार में
अनाथ हो जाना
पिता का
यूँ चले जाना ।
-विकास रोहिल्ला 'प्रीत'
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