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Sunday, September 15, 2019

रमेश शर्मा के दोहे

रमेश शर्मा के दोहे

हुई कागजी योजना, कहाँ कभी साकार।
हुआ नहीं धनहीन का, इसीलिए उद्धार।।
2
कागज पर लिखना नहीं, राज एक भी यार।
कब हो जाए क्या पता, कागज भी गद्दार।।
3
दिखलाओगे जो उसे, वही दिखेगा चित्र।
दर्पण की औ$कात क्या, तुम्हें चिढ़ाए मित्र।।
4
अज्ञानी समझूँ उसे, या बोलूँ नादान।
खाकर ठोकर भी नहीं, सुधरे जो इन्सान।।
5
बँटवारे का हो गया, उनको जब आभास।
बरगद पीपल आम सब, रहने लगे उदास।।
6
बैठाता है नाव में, देता कभी उतार।
जाने कैसा हो गया, नाविक का किरदार।।
7
लहरें उठें दुलार की, सजे हृदय का गाँव।
आँगन में जब भी पडें़, बेटी के दो पाँव।।
8
दिल तोड़े जो आपका, नहीं करूँगा भूल।
मैंने तो तोड़ा नहीं, कभी शाख से फूल।।
9
चले नहीं कानून की, उन पर कभी कटार।
होते हैं जो जुर्म के, असली ठेकेदार।।
10
हो जाते हैं वाकई, सीने में तब छेद।
कोई घर का भेदिया, गैरों को दे भेद।।
11
करें काव्य की आड़ मे, औरों का अपमान।
पंडित वे साहित्य के, होते नहीं महान।।
12
एक छोर पर ख्वाहिशें, दूजे पर औ$कात।
जिनमें फँसकर रह गये, जन, जीवन, जज्बात।।
13
उल्टी-सीधी बेतुकी, अगर करेगा बात।
होना तेरा लाजमी, दुनिया में कुख्यात।।
14
चाहे तो जड़ लीजिए, सोने में श्रीमान।
दर्पण झूठ न बोलता, सच का करे बखान।।
15
सूरत से तासीर की, मुश्किल है पहचान।
मिश्री हो या फिटकरी, दिखतीं एक समान।।
16
औरों को ओछा समझ, निज को कहे महान।
पंडित के पांडित्य का, तब ही घटता मान।।
17
खाने लग जाये अगर, स्वयं फसल को बाड़।
होना है फिर तो वहाँ, निश्चित समझ उजाड़।।
18
खाया जिसने तामसी, जीवन भर आहार।
कैसे होंगे फिर बता, उसके शुद्व विचार।।
19
आते हैं इस देश में, जब भी पास चुनाव।
हिचकौले खाने लगे, सहिष्णुता की नाव।।







1 comment:

  1. बहुत बहुत बधाई व हार्दिक शुभकामनायें आदरणीय ! बहुत ही सुंदर सृजन !

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