विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Monday, October 28, 2019

चित्रा श्रीवास के दोहे

चित्रा श्रीवास के दोहे

मंदिर मस्जिद छोडक़र, करो ज्ञान की बात।
होती कोई है नहीं, मानवता की जात।।
2
चावल सब्जी दाल पर, महँगाई की मार।
कीमत सुरसा-सी बढ़ी, चुप बैठी सरकार।।
3
भेदभाव छल झूठ का, रचते माया जाल।
सत्ता सुख को भोगकर होते मालामाल।।
4
बाँट रहे हैं देश को, जाति-धर्म के नाम।
अपनी रोटी सेकना, नेताओं का काम।।
5
पीपल बरगद भी कटे, उजड़ गये हैं नीड़।
गौरैया बेचैन है, किसे सुनाये पीड़।।
6
फितरत सबकी एक-सी, किसको देवें वोट।
जन की आशा रौंदते, करते अक्सर चोट।।
7
जात-पात के भेद में, उलझ गया इंसान।
खून सभी का लाल है, कब समझे नादान।।
8
गुणवत्ता की आड़ में, निजीकरण का खेल।
सत्ता-साहूकार का, बड़ा अजब है मेल।।
9
उजले कपड़ों में मिलें, मन के काले लोग।
जनसेवा के नाम पर, करते सुख का भोग।।
10
अमरबेल से फैलते, कुछ परजीवी रोज
औरों का हक छीनकर, करते शाही भोज।।
11
रिश्ते-नातों से बड़ा, अब पैसा श्रीमान।
पैसे खातिर बेच दें, लोग यहाँ ईमान।।
12
बही बाढ़ में झोपड़ी, महल देखता मौन।
बेबस-बेघर की यहाँ, व्यथा सुनेगा कौन।।
13
बेटी तुलसी मंजरी, है पूजा का फूल।
हरी दूब की ओस है, सब खुशियों की मूल।।
14
दाँव-पेच से हिल गई, रिश्तों की बुनियाद।
जड़ें हुई हैं खोखली, तृष्णा से बर्बाद।।
15
बेटी मारें कोख में, देवी पूजें रोज।
मंदिर-मस्जिद घूमकर, करें देव की खोज।।
16
मनुज बड़ा है दोगला, अंदर-बाहर और।
करे दिखावा दान का, छीने मुँह का कौर।।
17
पाकर सत्ता सुन्दरी, फ़र्ज़ गये हैं भूल।
दोनों हाथों लूटते, छोड़े सभी उसूल।।

हरिओम श्रीवास्तव के दोहे

हरिओम श्रीवास्तव के दोहे

छलनी बोली सूप से, गुप्त रखूँगी भेद।
नहीं कहूँगी मैं कभी, तुझमें कितने छेद।।
2
पति-पत्नि संतान में, सिमट गया परिवार।
मात-पिता ऐसे हुए, ज्यों रद्दी अ$खबार।।
3
टप-टप टपकी रातभर, रमुआ की खपरैल।
बाढ़ बहाकर ले गई, बछड़ा बकरी बैल।।
4
जिसको जो मिलता नहीं, लगे उसे वह खास।
लगे निरर्थक वह सभी, जो है जिसके पास।।
5
सावन से बरसात का, टूट गया अनुबंध।
मेघों को भाती नहीं, अब सौंधी-सी गंध।।
6
जिसको मिल जाए जहाँ, जब भी अपना मोल।
आदर्शों की पोटली, देता है वह खोल।।
7
अपनी भूलों पर सभी, बनते कुशल वकील।
गलती हो जब और की, देते तनिक न ढील।।
8
लक्ष्य प्राप्ति उसको हुई, जिसने किया प्रयास।
प्यासे को जाना पड़े, स्वयं कुए के पास।।
9
जो भी आया है यहाँ, जाएगा हर हाल।
निकट निरंतर आ रहा, काल साल दर साल।।
10
रखना हो जब व्यक्ति को, अपना कोई पक्ष।
मंदबुद्धि भी उस समय, लगता है अति दक्ष।।
11
फैशन की इस देश में, ऐसी चली बयार।
महिलाओं को लग रहा, वस्त्रों का ही भार।।
12
करता है वनराज भी, उठकर स्वयं शिकार।
मृग खुद सोते सिंह का, बने नहीं आहार।।



आशा देशमुख के दोहे

आशा देशमुख के दोहे

इस दुनिया में हो रहा, लक्ष्मी का सम्मान।
विद्या है परिचारिका, चुप बैठे गुणवान।।
2
आडंबर को देखकर, मन हो जाता खिन्न।
लोग हुए हैं दोगले, कथनी करनी भिन्न।।
3
माटी छूटी गाँव की, छूट गया खलिहान।
ऐसी नगरी आ बसे, मुख देखे पहचान।।
4
आदिम युग की वापसी, पाया फैशन नाम।
खान-पान पशुवत हुआ, असुर सरीखे काम।।
5
राह तकें नदियाँ सभी, रख निर्जल उपवास।
कब बरसोगे मेघ तुम, बुझे सभी की प्यास।।
6
महलों की सब क्यारियाँ, हरी-भरी आबाद।
प्यासे हलधर कर रहे, सावन से फरियाद।।
7
दूध दही नवनीत से, पाषाणों का स्नान।
एक बूँद जल के लिए, तरस रहे इंसान।।
8
मौन हुई है साधना, मंत्र हुए वाचाल।
किया स्वेद से आचमन, पूजा हुई निहाल।।
9
कुछ कुत्तों के भोज में, शाही मटन पुलाव।
मरते मानव भूख से, झेलें नित्य अभाव।।
10
असुर सरीखा आचरण, पशुवत है व्यवहार।
मानव से अब साँप भी, माँगे ज़हर उधार।।
11
माया के परिवेश में, घटा ज्ञान का मान।
खड़ी हासिये पर कला, फैशन का अनुदान।।
12
रूढि़-रीति, विज्ञान में, छिड़ा हुआ है द्वंद।
अंध आस्था ने किये, प्रगति द्वार सब बंद।।

Sunday, September 29, 2019

नयी सदी के दोहे : ''बेटा कहता बाप से'' के आधुनिक कबीर हैं- रघुविन्द्र यादव


आधुनिक कबीर- रघुविन्द्र यादव 

क्यों कहते हैं रघुविंद्र यादव को आधुनिक कबीर  

आधुनिक कबीर के दोहे/ आज के दोहे/  कलयुग के दोहे/ आज अगर कबीर जिन्दा होते तो ये होते आज के दोहे|  नयी सदी के दोहे/  लोकप्रिय दोहे| 
उपरोक्त शीर्षकों से आपने नीचे दिए दोहे सोशल मीडिया (फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ब्लोगस्पॉट, ट्विटर और गूगल के अलावा अख़बारों की साइट्स आदि) पर खूब पढ़े होंगे| पढ़कर मन में कभी यह जिज्ञासा भी उठी होगी कि यह आधुनिक कबीर अथवा इन दोहों का लेखक कौन है| तो आज हम आपका परिचय उस कलमकार से करवा रहे हैं, जिसने इन दोहों की रचना की है| इन दोहों के रचियता नारनौल के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रघुविन्द्र यादव हैं| जो हरियाणा प्रदेश ही नहीं देश के जानेमाने दोहाकार हैं| आपकी अब तक दोहे की दो पुस्तकें "नागफनी के फूल" और "वक्त करेगा फैसला" सहित कुल 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं 
 नीचे दिए दोहे उनकी पुस्तक नागफनी के फूल में वर्ष 2011 में प्रकाशित हुए थे| जो सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हुए हैं और अब तक एक करोड़ से अधिक लोग शेयर और कॉपी पेस्ट कर चुके हैं| इन दोहों के यूट्यूब पर दर्जनों विडियो उपलब्ध हैं| सुपरटोन कंपनी द्वारा बनाया गया विडियो अब तक एक ही लिंक पर एक करोड़ से अधिक बार देखा जा चुका है तो दूसरा विडियो 37 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है| यह संख्या संत कबीर के बाद दूसरे नंबर पर है|

श्री यादव शोध और साहित्यिक की राष्ट्रीय पत्रिका "बाबूजी का भारतमित्र" और वेब मैगज़ीन "विविधा" के संपादक हैं और महेंद्रगढ़ में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत हैं| इतना ही नहीं आप जाने माने पर्यावरण कार्यकर्ता भी हैं और आजकल राष्ट्रीय जल बिरादरी की अरावली भू-सांस्कृतिक इकाई के समन्वयक और नागरिक चेतना मंच के अध्यक्ष भी हैं| 



नई सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात !!

अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल !
बोझ समझ माँ बाप को, घर से रहा निकाल !!

पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ' लाज!
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज !!

भाई भी करता नही, भाई पर विश्वास! 
बहन पराई सी लगे, साली खासमखास !!

मंदिर में पूजा करें, घर में करे कलेश !
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश !!

बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धर्म, ईमान !
पत्थर के भगवान् हैं, पत्थर दिल इंसान !!

फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर !
पापी करते जागरण, मचा मचाकर शोर !!

-फीचर डेस्क 


Monday, September 23, 2019

शब्द और उनके अर्थ

शब्द  अर्थ 

कंदरा- गुफा या घाटी 
कंदील- मिट्टी या अभ्रक का लैंप 
कमलगट्टा- कमल का बीज 
कगार- ऊंचा किनारा, नदी का करारा, भूमि का ऊंचा भाग, टीला  
कचोटना- गढ़ना चुभना संताप होना
कोंचना-छेड़ना, गड़ाना, चुभाना 
च्यवन- टपकना,चूना, रसना, झरना, एक ऋषि का नाम 
छटा- प्रकाश, प्रभा, झलक, शोभा, छवि, सौन्दर्य, बिजली
छद्म- छिपाव, बहाना, मिस, छल, धोखा, कपट
जपनी- जपने की माला, गोमुखी 
जू- आकाश, सरस्वती, गमन, गति 
जैव- जीव या जीवन सम्बन्धी 
जोहार- अभिनंदन, नमस्कार, प्रणाम, जुहार 
तनुज- पुत्र, लड़का, बेटा
तनुजा- पुत्री, बेटी, लड़की