विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Tuesday, June 21, 2011

सत्य खड़ा लाचार

दोहे 
जाने अब इस देश का क्या होगा अंजाम.
बौनों को करने लगे, झुककर लोग सलाम.

ताकत के बल चल रहा, दुनिया का व्यवहार.
झूठ बुलंदी छू रहा, सत्य खड़ा लाचार.

विधवा होते ही हुए, सब दरवाजे बंद
आँखों का भी नींद से, टूट गया अनुबंध

सच को सच कैसे लिखे, जिसका बिका जमीर
अमर कबीरा हो गया, लिख जनता की पीर.

गाँधी तेरे देश का, अजब हुआ है हाल.
गुंडों के सिर ताज है, जनता है बदहाल

असली मालिक राज के, अब तक हैं बदहाल
देश लूट कर खा गए, नेता और दलाल

नेता लूटें देश को, पायें छप्पन भोग.
जनता की किस्मत बनी, भूख, गरीबी, रोग

कालों ने बस ले लिया, है गौरों का स्थान.
हुआ कहाँ आज़ाद है, अपना हिंदुस्तान.

राजनीति में हो गयी, चोरों की भरमार.
जनता को ही लूटते, जनता के सरदार.

1 comment:

  1. एक से एक बजनदार दोहे लिखे हैं | यादव जी आपको बधाई.
    - शून्य आकांक्षी

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