विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Sunday, October 16, 2011

दोहे

मंदिर, मस्जिद, चर्च पर, पहरे दें दरबान.
गुंडों से डरने लगे, कलयुग के भगवन.

कुर्सी पर नेता लड़ें, रोटी पर इंसान. 
मंदिर खातिर लड़ रहे, कोर्ट में भगवान.

मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश.
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश. 

बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान.
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान. 

भगवा चोला धार कर, करते खोटे काम.
मन में तो रावण बसा, मुख से बोलें राम. 

लोप धरम का हो गया, बढ़ा पाप का भार.
केशव भी लेते नहीं, कलियुग में अवतार. 

करें दिखावा भगति का, फैलाएं पाखंड.
मन का हर कोना बुझा, घर में ज्योति अखंड. 

पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग.
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग.

फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर.
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर.

धरम करम की आड़ ले, करते हैं व्यापार.
फोटो, माला, पुस्तकें, बेचें बंदनवार. 

लेकर ज्ञान उधार का, बने फिरे विद्वान्.
पापी, कामी भी कहें, अब खुद को भगवान

पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप.
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप. 

मंदिर, मस्जिद, चर्च में, हुआ नहीं टकराव.
पंडित, मुल्ला कर रहे, आये दिन पथराव. 

टूटी अपनी आस्था, बिखर गया विश्वास.
मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश.

पत्थर को हरी मान कर, पूज रहे नादान.
नर नारायण तज रहे, फुटपाथों पर प्राण.  

खींचे जिसने उमरभर, अबलाओं के चीर.
वो भी अब कहने लगे, खुद को सिद्ध फकीर. 

तन पर भगवा सज रहा, मन में पलता भोग.
कसम वफ़ा की खा रहे, बिकने वाले लोग.
-रघुविन्द्र यादव  



2 comments:

  1. "लेकर ज्ञान उधार का, बने फिरे विद्वान्.
    पापी, कामी भी कहें, अब खुद को भगवान

    पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप.
    भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप.

    मंदिर, मस्जिद, चर्च में, हुआ नहीं टकराव.
    पंडित, मुल्ला कर रहे, आये दिन पथराव.

    टूटी अपनी आस्था, बिखर गया विश्वास.
    मंदिर में गुंडे पलें, मस्जिद में बदमाश."

    दमदार दोहों की श्रंखला है . बहुत-बहुत बधाई.
    - शून्य आकांक्षी

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  2. आदरणीय, मानव पर बॉम्ब की तरह प्रहार करते बेहतरीन दोहे । बहुत-बहुत बधाई सर

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