कुछ नायाब खजाने रख
ले मेरे अफसाने रख
जिनका तू दीवाना हो
ऐसे कुछ दीवाने रख
आखिर अपने घर में तो
अपने ठौर ठिकाने रख
मुझ से मिलने-जुलने को
वरना गम हो जाएगा
ले मेरे अफसाने रख
जिनका तू दीवाना हो
ऐसे कुछ दीवाने रख
आखिर अपने घर में तो
अपने ठौर ठिकाने रख
मुझ से मिलने-जुलने को
अपने पास बहाने रख
वरना गम हो जाएगा
खुद को ठीक ठिकाने रख |
-विज्ञान व्रत
(विज्ञान दादा की इस ग़ज़ल कृति "मैं जहाँ हूँ" का 17 अगस्त को लोकार्पण है| जिसमें उनकी धारदार गज़लें संकलित हैं और अयन प्रकाशन से प्राप्त की जा सकती है)
"आखिर अपने घर में तो
ReplyDeleteअपने ठौर ठिकाने रख
मुझ से मिलने-जुलने को
अपने पास बहाने रख "
वाह ! वाह ! बहुत खूब ! पूरी ग़ज़ल ही बहुत प्यारी है । हार्दिक बधाई विज्ञानं व्रत जी ....
"आखिर अपने घर में तो
ReplyDeleteअपने ठौर ठिकाने रख
मुझ से मिलने-जुलने को
अपने पास बहाने रख "
वाह ! वाह ! बहुत खूब ! पूरी ग़ज़ल ही बहुत प्यारी है । हार्दिक बधाई विज्ञानं व्रत जी ....