विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Sunday, August 16, 2015

कुछ नायाब खजाने रख - विज्ञान व्रत

कुछ नायाब खजाने रख
ले मेरे अफसाने रख

जिनका तू दीवाना हो
ऐसे कुछ दीवाने रख

आखिर अपने घर में तो
अपने ठौर ठिकाने रख

मुझ से मिलने-जुलने को
अपने पास बहाने रख 

वरना गम हो जाएगा
खुद को ठीक ठिकाने रख |

-विज्ञान व्रत

(विज्ञान दादा की इस ग़ज़ल कृति "मैं जहाँ हूँ" का 17 अगस्त को लोकार्पण है| जिसमें उनकी धारदार गज़लें संकलित हैं और अयन प्रकाशन से प्राप्त की जा सकती है)

2 comments:

  1. "आखिर अपने घर में तो
    अपने ठौर ठिकाने रख

    मुझ से मिलने-जुलने को
    अपने पास बहाने रख "

    वाह ! वाह ! बहुत खूब ! पूरी ग़ज़ल ही बहुत प्यारी है । हार्दिक बधाई विज्ञानं व्रत जी ....

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  2. "आखिर अपने घर में तो
    अपने ठौर ठिकाने रख

    मुझ से मिलने-जुलने को
    अपने पास बहाने रख "

    वाह ! वाह ! बहुत खूब ! पूरी ग़ज़ल ही बहुत प्यारी है । हार्दिक बधाई विज्ञानं व्रत जी ....

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