मौसम बैरी कर गया, सपनों पर आघात ।
वापस तोरण द्वार से , लौट गई बारात ।।
'धनिया' तेरी लाड़ली, रोई सारी रात ।
अँसुवन से धोती रही, मेंहदी राचे हाथ ।।
सूखे कण्ठों ने वहां, समझा था कुछ नीर |
मृग-तृष्णा साबित हुआ, जमना जी का तीर ||
कमल खिलें हर हाल में, क्या मजबूरी हाय !
इक मीठा तालाब भी, दलदल होता जाय ||
दोहों में अपनी हुई, ईद दिवाली तीज ।
दो बीघा का खेत है, ढाई आखर बीज ।।
रहे किरायेदार हम, जब तक रहे जवान ।
चढ़ी न जाये सीढियाँ, खुद का बना मकान ।।
भटक रही थी ज़िन्दगी, लू में नंगे पाँव ।
कोई हमको यूँ मिला, ज्यूँ बरगद की छाँव ।।
शब्द-शरों की ना करो, कुम्हारिन बौछार ।
तेरे-मेरे हाथ में, है प्रिय गीली गार ।।
उम्मीदों की पोटली, दिन दिन जाये रीत ।
देख रहा हूँ बीज को, होते कालातीत ।।
बदरा को पतियाँ लिखूं, अँसुवन से दिन-रात |
वो बरसे तो हो सकें, 'लाडो' पीले हाथ ||
दिन दिन टूटत देह के, तम्बूरे के तार ।
जिजीविषा के राग का, होता नित विस्तार ।।
वो हमसे नाराज़ हैं, हम उनसे नाराज़ |
सबके अपने तर्क हैं, चिड़िया हो या बाज़ ||
मैं उससे कैसे कहूँ, खुलकर दिल की बात |
दिनभर मेरे साथ था, दुश्मन के घर रात ||
पूंजी थी बस प्रेम की, जैसे लाख-करोड़ ।
इक छोटा सा खेत अरु, बैलों की इक जोड़ ।।
छप्पर भी प्रासाद थे, सुख दुःख में थे संग ।
महानगरिया ले गई, जीवन के सब रंग ।।
किससे हम शिकवा करें, किसको दें अब दोष ।
चाँदी छीने जा रही, सोने सा संतोष ।।
आ भी जा संजीवनी, निकट भुला कर रोष ।
बाट निहारत हो गया, हमें नज़र का दोष ।।
रुको अभी यमराज जी, चर्चा है सर्वत्र ।
उनका भी पढ़ता चलूँ, नया घोषणा-पत्र ।।
ललचाते हैं राह को, गेंदा और गुलाब ।
नगर देखता झोंपड़ी, नील-पीले ख्वाब ।।
इसी मोड़ पर हादसे, होते हैं हर बार ।
थोड़ी सी ऊंची करो, आँगन की दीवार ।।
कलियों सी मासूमियत, फूलों सी मुस्कान |
इस धरती पर लड़कियाँ, विधना का वरदान ||
हम ही करते हैं चलो, समझौता-संवाद |
और सहा जाता नहीं, जां लेवा अवसाद ||
इतने भी चुप ना रहो, टूट पड़ेंगे गिद्ध ।
आती-जाती साँस को, कुछ तो करिये सिद्ध ।।
-राम नारायण ‘हलधर’
कोटा [राजस्थान] -324001
Emai-rnmhaldhar@gmail.com
वापस तोरण द्वार से , लौट गई बारात ।।
'धनिया' तेरी लाड़ली, रोई सारी रात ।
अँसुवन से धोती रही, मेंहदी राचे हाथ ।।
सूखे कण्ठों ने वहां, समझा था कुछ नीर |
मृग-तृष्णा साबित हुआ, जमना जी का तीर ||
कमल खिलें हर हाल में, क्या मजबूरी हाय !
इक मीठा तालाब भी, दलदल होता जाय ||
दोहों में अपनी हुई, ईद दिवाली तीज ।
दो बीघा का खेत है, ढाई आखर बीज ।।
रहे किरायेदार हम, जब तक रहे जवान ।
चढ़ी न जाये सीढियाँ, खुद का बना मकान ।।
भटक रही थी ज़िन्दगी, लू में नंगे पाँव ।
कोई हमको यूँ मिला, ज्यूँ बरगद की छाँव ।।
शब्द-शरों की ना करो, कुम्हारिन बौछार ।
तेरे-मेरे हाथ में, है प्रिय गीली गार ।।
उम्मीदों की पोटली, दिन दिन जाये रीत ।
देख रहा हूँ बीज को, होते कालातीत ।।
बदरा को पतियाँ लिखूं, अँसुवन से दिन-रात |
वो बरसे तो हो सकें, 'लाडो' पीले हाथ ||
दिन दिन टूटत देह के, तम्बूरे के तार ।
जिजीविषा के राग का, होता नित विस्तार ।।
वो हमसे नाराज़ हैं, हम उनसे नाराज़ |
सबके अपने तर्क हैं, चिड़िया हो या बाज़ ||
मैं उससे कैसे कहूँ, खुलकर दिल की बात |
दिनभर मेरे साथ था, दुश्मन के घर रात ||
पूंजी थी बस प्रेम की, जैसे लाख-करोड़ ।
इक छोटा सा खेत अरु, बैलों की इक जोड़ ।।
छप्पर भी प्रासाद थे, सुख दुःख में थे संग ।
महानगरिया ले गई, जीवन के सब रंग ।।
किससे हम शिकवा करें, किसको दें अब दोष ।
चाँदी छीने जा रही, सोने सा संतोष ।।
आ भी जा संजीवनी, निकट भुला कर रोष ।
बाट निहारत हो गया, हमें नज़र का दोष ।।
रुको अभी यमराज जी, चर्चा है सर्वत्र ।
उनका भी पढ़ता चलूँ, नया घोषणा-पत्र ।।
ललचाते हैं राह को, गेंदा और गुलाब ।
नगर देखता झोंपड़ी, नील-पीले ख्वाब ।।
इसी मोड़ पर हादसे, होते हैं हर बार ।
थोड़ी सी ऊंची करो, आँगन की दीवार ।।
कलियों सी मासूमियत, फूलों सी मुस्कान |
इस धरती पर लड़कियाँ, विधना का वरदान ||
हम ही करते हैं चलो, समझौता-संवाद |
और सहा जाता नहीं, जां लेवा अवसाद ||
इतने भी चुप ना रहो, टूट पड़ेंगे गिद्ध ।
आती-जाती साँस को, कुछ तो करिये सिद्ध ।।
-राम नारायण ‘हलधर’
कोटा [राजस्थान] -324001
Emai-rnmhaldhar@gmail.com
आपके चयन की दाद देनी पड़ेगी आदरणीय रघुविन्द्र जी
ReplyDeleteमैं नालायक तो भेज नहीं पाया था,आपने मुझे इस योग्य समझा ,आभारी हूँ
धन्यवाद के सिवा मेरे पास और है ही क्या ,ये स्नेह बनाये रखियेगा
स्वागत है हलधर जी,
Deleteआपके चयन की दाद देनी पड़ेगी आदरणीय रघुविन्द्र जी
ReplyDeleteमैं नालायक तो भेज नहीं पाया था,आपने मुझे इस योग्य समझा ,आभारी हूँ
धन्यवाद के सिवा मेरे पास और है ही क्या ,ये स्नेह बनाये रखियेगा
आपके दोहों में साहित्यिक उजास स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है । सबसे अच्छी बात यह है कि उसमें जीवन की सच्चाई भी है और आपकी स्वयं की जमीन भी । अच्छे सृजन के लिए बधाई Ram Narayan Meena " Haldhar " जी …
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