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विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Monday, August 10, 2015

ग़ज़ल - कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

छत की उम्र पूछनी है तो ढहती दीवारोँ से पूछ।
आग का मतलब पूछ न मुझसे जलते अंगारों से पूछ।

छेनी की चोटों से जिनका रेशा रेशा दुखता है,
ऊंचा उठने की कीमत तो ज़ख्मी मीनारों से पूछ।

बड़े बड़े महलों का तू इतिहास लिखे , इससॆ पहले
कितने घर बरबाद हुए थे बेघर बंजारों से पूछ।

पुरखों की संघर्ष-कथा कंप्यूटर क्या बतलाएगा,
कैसे मुकुट बचा माता का टूटी तलवारों से पूछ।

ओ मगरूर मुसाफ़िर तेरे सफ़र की फिर भी मंज़िल है,
जिनको चलना और फ़क़त चलना है उन तारोँ से पूछ।

- कृष्ण गोपाल विद्यार्थी

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