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विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Wednesday, August 12, 2015

लोकप्रिय दोहे


गोरी सोई सेज पै, मुख पर डारे केस।
चल 'खुसरो’ घर आपने, रैन भई चहुँ देस।।
-अमीर खुसरो
चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूकै चौहान।।
-चन्द बरदाई
अजगर करै न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गये, सबके दाता राम।।
-मलूक दास
जो मैं ऐसा जानती, प्रीति किए दुख होय।
नगर ढिंढ़ोरा पीटती, प्रीति न करियो कोय।।
-मीरा बाई
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहि।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूद चलि जाहि।।
-रहीम
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान
रसरी आवत-जात ते, सिल पर परत निसान।।
-कवि वृन्द
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल।
अली कली ही सौं बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
-बिहारी
सदा सील तुम सरस के, दरस हर तरह खास।
सखा हर तरह सरद के, सरसम तुलसी दास।।
-तुलसीदास
जिनके पल्ले धनु बसे, उसका नाम $फकीर।
जिसके हृदय तू बसहिं, ते नर गुणी अहीर।।
-गुरुनानक
फूटी आँख विवेक की, लखे न सन्त असन्त।
जाके संग दस-बीस हैं, ताको नाम महन्त॥
-कबीर

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