विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Monday, December 21, 2015

राजेश जैन राही के दोहे

शोर करे होता नहीं, सत्य कभी कमजोर।
मिले नहीं अंगूर तो, खट्टे कहता चोर।।
 
कभी आपदा बाढ़ की, कभी तेज भूचाल।
मानव बंधन में नहीं, कुदरत भी विकराल।।

कई मुखौटे ओढ़कर, मिलते हैं इंसान।
बुरे वक्त में हो रही, अच्छे की पहचान।।

मुद्दे फर्जी हो गए, गया फर्ज वनवास।
राजनीति विरहन हुई, कुर्सी की बस आस।।
 
राजा का है काफिला, खड़े रहेंगे आम।
बहस करे होना नहीं, हासिल कुछ परिणाम।।

सत्य कभी हारे नहीं, नहीं मचाए शोर।
मुझसे सच्चा कौन है, कहता अक्सर चोर।

गंगा धारा प्रेम की, जीवन का आधार।
पापों को धोकर दिए, हमने क्या उपहार।।
 
छुट्टी देकर काम को, चलो बजांये गाल।
कौन भला रोके हमें, संसद है ननिहाल।।

-राजेश जैन राही

आई-1, राजीव नगर, रायपुर
मो. 09425286241

No comments:

Post a Comment