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Saturday, June 4, 2016

फिर ले आई घास - हरेराम समीप

क्यों रे दुखिया, क्या तुझे, इतनी नहीं तमीज़।
मुखिया के घर आ गया, पहने नई कमीज़।।

उस दुखिया माँ पर अरे, कुछ तो कर ले गौर।
तुझे खिलाती जो रही, फूँक-फूँककर कौर।।

पानी ही पानी रहा, जिनके चारों ओर।
प्यास-प्यास चिल्ला रहे, वही लोग पुरजोर।।

आओ हम उजियार दें, ये धरती ये व्योम।
तुम बन जाओ वर्तिका, मैं मन जाऊँ मोम।।

कोई तो सुन ले यहाँ, मेरे दिल का राज़।
सूख गया मेरा गला, दे-दे कर आवाज़।।

पुलिस पकडक़र ले गई, सिर्फ उसी को साथ।
आग बुझाने में जले, जिसके दोनों हाथ।।

इतना ही मालूम है, इस जीवन का सार।
बंद कभी होते नहीं, उम्मीदों के द्वार।।

बिना रफू के ठीक थी, शायद फटी कमीज।
बाद रफू के हो गई, वो दो रंगी चीज।।

फिर निराश मन में जगी, जवजीवन की आस।
चिडिय़ा रोशनदान पर, फिर ले आई घास।।

केवल दुख सहते रहो, यही नहीं है कार्य।
अपने सुख को शब्द भी, देना है अनिवार्य।।

-हरेराम समीप

395, सेक्टर-8, फरीदाबाद
9871691313

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