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Sunday, June 5, 2016

जीवन का नव दौर - घमंडीलाल अग्रवाल

आज़ादी के अर्थ को, देनी होगी दाद।      
जो भी मन हो कीजिए, दंगे, खून, फसाद।।

नदी किनारे वह रहा, प्यासा सारी रात।  
समझ नहीं पाई नदी, उसके मन की बात।।

गजदन्तों से सीखिए, जीवन का नव दौर।
खाने के हैं दूसरे, दिखलाने के और।।

मंत्री जी का आगमन, हर्षाता मन-प्राण।
सडक़ों की तकदीर का, हो जाता कल्याण।।

कोई तो हँसकर मिले, कोई होकर तंग।
दुनिया में व्यवहार के, अपने-अपने ढंग।।

जायदाद पर बाप की, खुलकर लड़ते पूत।
बहनें सोचें किस तरह, रिश्ते हों मतबूत।।

यश अपयश कुछ भी मिले, अपनाई जब पीर।
मीरा ने भी यह कहा, बोले यही कबीर।।

बीयर की बोतल खुली, पास हुए प्रस्ताव।
बाज़ारों में बढ़ गए, नून, तेल के भाव।।

करते हैं कुछ लोग यों, जीवन का शृंगार।  
एक आँख में नीर है, एक आँख अंगार।।

यह रोटी को खोजता, वह सोने की खान।
अपने प्यारे देश में, दो-दो हिन्दुस्तान।।

-घमंडीलाल अग्रवाल

785/8, अशोक विहार, गुडग़ाँव-122006
9210456666

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