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Tuesday, June 7, 2016

आया नहीं सुराज - कन्हैयालाल अगवाल 'आदाब'

पाल-पोस स्याना किया, समझा जिसे निवेश।
कागा बनकर उड़ गया, जाने कब परदेश।।

संगम और विछोह दो, प्रीत-प्रेम के अंग।
कांटों और गुलाब का, सदा रहा है संग।।

बरसों से लौटे नहीं, जिनके घर को कंत।
उनको तो सब एक से, सावन, पूस, बसंत।।

हर सपने के साथ है, पहले काली रात।
उसके बिन आता नहीं, कोई नया प्रभात।।

क्या है उसके भाग्य में, नहीं जानता फूल। 
या तो माला में गूँथे, या फिर फाँके धूल।।

नयनों से नयना मिले, नयन हो गए चार। 
क्यों केवल दो नयन पर, आँसू का अधिकार।।

कोई खुल कर के करे, अब किस पर विश्वास।
पासवर्ड जब सत्य का, है झूठों के पास।।

हाँ! स्वराज्य तो आ गया, आया नहीं सुराज।
देख अकेली फाखता, नहीं चूकता बाज।।

व्यर्थ कहावत हो गई, धन है दुख की खान।
अब तो सारे जगत में, केवल अर्थ प्रधान।।

जब शकुन्तला को गहे, बाहों में दुष्यंत। 
गर्मी, वर्षा, शीत सब, उसके लिए बसंत।।

-कन्हैयालाल अगवाल 'आदाब'

89, ग्वालियर रोड़, नौलक्खा, आगरा-282001
9917556752

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