विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Wednesday, October 14, 2015

अम्बरीश श्रीवास्तव 'अम्बर' के दोहे

जनहित में दंगे हुए, सम्यक हुआ प्रयास|
अभी मिलेगा मुफ्त में, सुख सुविधा आवास||

कूटतंत्र की राह पर, छूटतंत्र का राज|
लोकतंत्र है सामने, रामराज्य है आज||

चोरी यद्यपि पाप है, चोरी है अपराध|
फिर भी चोरी कीजिये, ऑफीसर को साध||

जो भी मंदिर में गया. उसे डरा ही मान|
बाकी सब शमशेर हैं, कहते आमिर खान||

हरित-वाटिका में सुनें, सीत्कार औ' आह|
गुत्थमगुत्था आधुनिक, हो गन्धर्व विवाह||

गोचर सारे गुम हुए, नहीं रहे खलिहान|
गोवंशी तक कट रहे, कहाँ गए इंसान||

भगिनी-मातु समान है, नारी है अनमोल|
फिर भी दुनिया मापती, नारी का भूगोल||

घोटाला ही कीजिये, मत डरिये सरकार|
पकड़ेगा कोई नहीं, जन्मसिद्ध अधिकार||

टीचर जनगणना करें, पल्स-पोलियो आम|
एक पढाई छोड़कर, सौंपे सौ-सौ काम||

गाड़ी-बँगला कीमती, दोनों में हो प्यार|
भाई जी अपनाइए, खुलकर भ्रष्टाचार||

अल्प वस्त्र में अधखुले, अति आकर्षक अंग|
चंचल मन को मारिये, व्यर्थ करे यह तंग||

आमंत्रण दें द्रौपदी, चीर मचाये शोर|
लूट रहे अब लाज को, कलि के नन्दकिशोर||

अनशन ही अपनाइए, दे इच्छित आकार|
सत्ता की सीढ़ी बने, पावन भ्रष्टाचार||

कितना हुआ विकास है, देखें एक मिसाल|
गिरता जाता रूपया, डालर करे कमाल||

सत्ता संरक्षित करे, भेजे ताजा खेप|
कपट गुंडई लूट छल, किडनैपिंग औ' रेप||

गाँव-गाँव में चल रहे, बेशर्मी के काम|
शीला बनी जवान है, मुन्नी तक बदनाम||

कैसा यह दुर्भाग्य है, मूल कर दिया लुप्त|
हिन्दी-हिन्दी जाप हो, वैदिक भाषा सुप्त||

पढ़े विदेशी वेद तक, भारतीय हों बोर|
देवनागरी छोड़कर, अंग्रेजी का जोर||

खाया चारा कोयला, प्यार चढ़ा परवान|
करें दलाली मित्रवर, बहुत भला ईमान||

रोजी-रोटी, अन्न-जल, सब दे भारत देश|
देश विरोधी आचरण, से हो दिल में क्लेश||

-इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर' 

सीतापुर, उत्तर प्रदेश

No comments:

Post a Comment