आँगन सूना छोडक़र, सपने छोड़ अनाथ।
गाँव शहर में जा बसा, कुछ सपनों के साथ।।
आँसू पीकर माँ पड़ी, सपन समेटे बाप।
पूत अकेला शहर में, सडक़ रहा है नाप।।
हाथ झटक चम्पा चली, बूढ़ा हुआ रसाल।
वृद्धाश्रम के द्वार पर, खड़े करोड़ी लाल।।
सर-सरिता-बादल पिये, फिर भी रहे उदास।
अब इस आदम की कहो, कहाँ बुझेगी प्यास।
खोज रहे हो तुम जिसे, ऐसे खड़े उदास।
वह हंसों का गाँव था, अब यह काग निवास।।
पत्थर को अर्पित किए, अक्षत-चंदन-फूल।
पर जीवित इन्सान को, बोये पग-पग शूल।।
बाप रोग से मर गया, पूत कजऱ् के भार।
बची रोटियाँ खा गए, बामन-धूत-लबार।।
नन्हे दीपक ने नहीं, पल भर मानी हार।
रहा रात भर काटता, तिल तिल कर अँधियार।
हमें न आया आम को, कहना कभी बबूल।
इसीलिए फुटपाथ पर, रहे छानते धूल।।
टूट चुके कब तक सहें, ये दंशों पर दंश।
करना है निर्मूल अब, यह साँपों का वंश।।
9425016140
गाँव शहर में जा बसा, कुछ सपनों के साथ।।
आँसू पीकर माँ पड़ी, सपन समेटे बाप।
पूत अकेला शहर में, सडक़ रहा है नाप।।
हाथ झटक चम्पा चली, बूढ़ा हुआ रसाल।
वृद्धाश्रम के द्वार पर, खड़े करोड़ी लाल।।
सर-सरिता-बादल पिये, फिर भी रहे उदास।
अब इस आदम की कहो, कहाँ बुझेगी प्यास।
खोज रहे हो तुम जिसे, ऐसे खड़े उदास।
वह हंसों का गाँव था, अब यह काग निवास।।
पत्थर को अर्पित किए, अक्षत-चंदन-फूल।
पर जीवित इन्सान को, बोये पग-पग शूल।।
बाप रोग से मर गया, पूत कजऱ् के भार।
बची रोटियाँ खा गए, बामन-धूत-लबार।।
नन्हे दीपक ने नहीं, पल भर मानी हार।
रहा रात भर काटता, तिल तिल कर अँधियार।
हमें न आया आम को, कहना कभी बबूल।
इसीलिए फुटपाथ पर, रहे छानते धूल।।
टूट चुके कब तक सहें, ये दंशों पर दंश।
करना है निर्मूल अब, यह साँपों का वंश।।
-यतीन्द्रनाथ 'राही'
ए-54, रजत विहार, होशंगाबाद रोड़, भोपाल-269425016140
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