विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Wednesday, December 7, 2011

ग़ज़ल

गद्दारों से यारी मत कर
राहों में दुश्वारी मत कर

हैं तेरी रग-रग से वाकिफ
हम से तू होश्यारी मत कर

गिरगिट रंग बदलना भूले
इतनी भी मक्कारी मत कर

अपने तो अपने होते हैं
उनसे तो गद्दारी मत कर

नफरत का बारूद बिछा कर
उड़ने की तैयारी मत कर

तेरा घर भी जल जायेगा
शोलों से तू यारी मत कर

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