नए दोहे
कोई दौलत लूटता, कोई लूटे चीर/
नेताओं ने देश को, समझ लिया जागीर//
नेताओं ने देश को, समझ लिया जागीर//
आंसू बनकर बह रहे, जनता के अरमान/
उसने जो सेवक चुने, निकले बेईमान//
संसद उनकी हो गयी, उनका हुआ विधान/
नेताओं ने देश को, लिया बपौती मान//
रहबर ही रहजन हुए, जनता है मजबूर/
मरहम ही करने लगी, ज़ख्मों को नासूर//
नेताओं ने यूँ किये, सपने चकनाचूर/
मरहम से बनने लगे, ज़ख्म सभी नासूर//
समा गया है खून में, अब तो भ्रष्टाचार/
बाड़ खेत खाने लगी, कैसे हो उपचार//
-रघुविन्द्र यादव
-रघुविन्द्र यादव