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Sunday, January 15, 2012

दैनिक ट्रिब्यून 15 जनवरी का सम्पादकीय


ज्यादा उम्र तक सुखद जीवन जीने और पीने की इच्छा रखने वालों के लिए यह खबर नसीहतभरा पैगाम ले आयी है। हाल ही में ब्रिटेन के एक सर्वाधिक उम्रदराज दंपति की शादी की 86वीं सालगिरह की खबर अखबारों की सुर्खियों में आयी। खबर के मुताबिक 106 साल के करमचंद और उनकी 99 साल की पत्नी करतारी, जो 1965 में पंजाब से ब्रिटेन जाकर बसे थे, ने पिछले दिनों अपनी शादी की 86वीं सालगिरह मनायी। उनका दावा है कि वे ब्रिटेन के सबसे लंबे वक्त तक जीवित विवाहित जोड़ा बने रहने का खिताब हासिल कर सकते हैं। जब उनसे चिरायु तक शारीरिक एवं ‘वैवाहिकÓ रूप से सेहतमंद रहने का रहस्य पूछा गया तो उनका कहना था कि आप जो चाहते हैं खाइये-पीजिए लेकिन अत्यधिक नहीं। करमचंद रोजाना रात के खाने से पहले एक सिगरेट पीते हैं और सप्ताह में तीन और चार बार व्हिस्की तथा ब्रांडी भी लेते हैं। करम चंद के इस दावे से उन शायर महोदय को तकलीफ जरूर हुई होगी जिसने कहा था :-
मद भरे जाम से डर लगता है,
प्यार के नाम से डर लगता है।
जिसका आगाज़ चोरी-चोरी हो,
उसके अंजाम से डर लगता है।
करमचंद और उनकी धर्मपत्नी करतारी ने तंदुरुस्ती और लंबी उम्र तक जीने का अगला गुर बताया—परस्पर अथाह प्रेम। इसमें संदेह नहीं कि वृद्धावस्था में पति और पत्नी ही एक-दूसरे की शून्यता के पोषक होते हैं क्योंकि बेटे-बेटियां और उनकी अगली पीढिय़ां अपने कामकाज और परिवारों में व्यस्त हो जाते हैं। ऐसे माहौल में पति और पत्नी ही एक-दूसरे के पोषक और पूरक बन सकते हैं। ब्रिटेन के इस वयोवृद्ध जोड़े से भारत के युवाओं को उन जोड़ों को नसीहत लेनी चाहिए जो आज की भागदौड़ और जि़ंदगी में झगड़ालु, तुनकमिजाज और असहिष्णु होते जा रहे हैं। कितनी हैरत की बात है कि एक भारतीय दंपति पूर्व से जाकर पश्चिम में हमारे देश की समृद्ध संस्कृति तथा संस्कारों का संदेश दे रहा है जबकि रघुविन्दर यादव की इन पंक्तियों पर गौर करें तो लगता है कि हमारे यहां तो गंगा उलटी ही बहने लगी है :-
मृत हुई संवेदना, खत्म हुआ सद्भाव,
पूर्व पर भी हो गया पश्चिम का परभाव।
उधर, प्रख्यात एवं वयोवृद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह द्वारा बताये गये जवान बने रहने के टोटके भी काबिलेगौर हैं। उनका कहना है कि वृद्धावस्था को जीने लायक बनाये रखने के लिए शरीर की नियमित रूप से मालिश करनी चाहिए। वह सुबह का नाश्ता तो अमरूद के रस से शुरू करते हैं लेकिन सांझ ढलते ही सिंगल माल्ट व्हिस्की का प्याला हाथ में ले लेते हैं। यहां हमारा अभिप्राय यह नहीं कि व्हिस्की सेहत के लिए लाभदायक होती है। लेकिन खुशवंत सिंह के रोजमर्रा के जीवन के कई और ऐसे पहलु हैं जो इस उम्र में भी उन्हें जि़ंदादिल इनसान बनाये हुए हैं। उनका मानना है कि अपनी दिनचर्या पर सख्त अनुशासन रखो। जरूरी हो तो स्टॉप वॉच का प्रयोग करो। वह सुबह ठीक 6 बजे अमरूद के रस का नाश्ता लेते हैं, 12 बजे पतली खिचड़ी, सब्जी से लंच और डिं्रक के उपरांत रात 8 बजे भोजन। उनका कहना है कि मन को शांत रखो और हमेशा अपने राष्ट्रीय प्रतीक सत्यमेव जयते का अनुपालन करो। खुशवंत सिंह जैसी शख्सियत से हम न केवल स्वस्थ रहने की सीख ले सकते हैं बल्कि प्रेरणा भी पा सकते हैं। हम अपनी बात की ताकीद यादव जी की इन पंक्तियों के माध्यम से भी कर सकते हैं :-
मंजि़ल उसको ही मिली जिसमें उत्कट चाह,
निकल पड़ा जो ढूंढने पाई उसने राह।
परिवार के बच्चों, युवा सदस्यों की दिनचर्या में बेमतलब का दखल, निठल्लापन, चिड़चिड़ापन और निंदा-चुगली करते रहना बुढ़ापे का विष है जबकि सुबह की सैर, योगाभ्यास, ध्यान, पूजा-अर्चना और संवेदनशीलता बुढ़ापे के अमृत माने जा सकते हैं। पति-पत्नी अगर एक-दूसरे से दु:ख-सुख को समझने का संवेदन-भाव रखते हों तो यह दोनों के लिए अमृतपान समान हो सकता है। ऐसा न होने पर जीवन का हाल क्या होगा, इसका अनुमान टॉलस्टॉय के जीवन से भलीभांति लगाया जा सकता है। संत स्वभाव के टॉलस्टॉय के पास धन-दौलत और ख्याति की कोई कमी नहीं थी लेकिन पत्नी के कटु व्यवहार से जीवनभर पीड़ा झेलते रहे और अंतत: पराजित होकर 82 वर्ष की आयु में शांति की तलाश में घर छोड़ गये। इस प्रकरण को याद करते हैं तो कवि की यह पंक्तियां सहज मन-मस्तिष्क में आ जाती है :-
हम रूठें तो किसके भरोसे रूठें,
कौन है जो आयेगा हमें मनाने के लिए,
हो सकता है तरस आ भी जाये आपको,
पर दिल कहां से लायें आप से रूठ जाने के लिए?
ब्रिटेन में बसे करमचंद तथा करतारी के 27 पोते-पोतियां और 23 परपौत्र-परपौत्रियां हैं और वे जीवन के हर लम्हे को बोनस और भगवान का प्रसाद मानकर मजे से जी रहे हैं। यदि हम बुढ़ापे को अभिशाप न मानें और इसे लेकर रोना न रोयें तो यह सकारात्मक दृष्टिकोण आपकी वृद्धावस्था को विचलित नहीं होने देगा। तो आइये, कवि के इस आह्वान पर चलें :-
वक्त कहता है बदल दो जि़ंदगी के मायने,
रूप पहला देखने को पर खड़े हैं आईने।

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