विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Monday, August 17, 2015

मेरा देश ...मेरा घर - विजया भार्गव

मां....
तेरे चरणों को छू के
सरहद पे जाना चाहता हूं
...जाने दे ना मां मुझे...
मेरे .इस घर की रक्षा
भाई..पापा...कोमल बहना
मेरी दुर्गा कर लेंगे
अबं..मुझ को तो सरहद पे
उस मां की रक्षा करनी है
ताकी मेरे देश के.
घर घर मे खुशहाली हो...
जाने दे ..मुझे
हर घर मेरा घर है
हर घर की सुरक्षा करनी है
मां का आंचल बेदाग रहे
हर सांस प्रतिज्ञा करनी है

मत रोक री बहना
जाने दे
तेरे जैसी कितनी .
मासूम चिडियाओं की
रक्षा करनी है
हर घर आगंन की
चहक महक
मुस्कान की
रक्षा करनी है..

मत रोको दुर्गा .
आसूं से
तुम ही तो मेरी शक्ती हो
तुम को तो ..मैं बन के
इस घर को खुशियां देनी है
मत रो पगली
जाने को कह
इक बार तो हंस के
कह भी दे
तुझ सी दुर्गाओं के
मांगों के
सिन्दूर की रक्षा करनी है
बहुत विस्ञित है घर मेरा
जाने दे
दुआ करना...जब आऊं मैं
तान के सीना आऊंगा
जो ना आ पाया
तो भी मैं
तान के सीना जाऊंगा

कभी ना रोना तुम
मैं यहीं कहीं दिख जाऊँगा
जब-जब मुस्काएगा बच्चा
मैं मुस्काता दिख जाऊँगा
जाता.हूँ ....आऊंगा ...........

-विजया भार्गव 'विजयंती', मुंबई

vijayanti.b@gmail.com

No comments:

Post a Comment