दस्तक दी जब प्रेम ने, खुला हृदय का द्वार।
पिछले दरवाजे अहम्, भागा खोल किवाड़।।
जो मेरा वह आपका, निर्णय हो अभिराम।
मिले हमारे प्रणय को, शुभ परिणय का नाम।।
तन करता इकरार पर, मन करता इनकार।
देहाकर्षण उम्र का, वह कब सच्चा प्यार।।
देह रूप या रंग में, किसको कह दूँ अग्र।
सच तो यह है, तुम मुझे, सुन्दर लगी समग्र।।
अलग थलग होकर रहे, खुद को लिया समेट।
किंतु तुम्हारी नज़र ने, हमको लिया लपेट।।
तुमने बत्ती दी बुझा, जब हम हुए समीप।
लगा देव की नायिका, बुझा रही हो दीप।।
भरा रहा है प्रेम से, सतत आयु का कोष।
उससे मिली जिजीविषा, जीने का संतोष।।
उथली भावुकता भरा, सुख सपनों का ज्वार।
देहाकर्षण है महज, कच्ची वय का प्यार।।
सुन तो लेते हैं उन्हें, लोग न करते गौर।
जिनकी कथनी और है, लेकिन करनी और।।
गिनते हैं जब नोट सब, धन-अर्जन की होड़।
ऐसे मे कवि कर रहा, मात्राओं का जोड़।।
9329895540
पिछले दरवाजे अहम्, भागा खोल किवाड़।।
जो मेरा वह आपका, निर्णय हो अभिराम।
मिले हमारे प्रणय को, शुभ परिणय का नाम।।
तन करता इकरार पर, मन करता इनकार।
देहाकर्षण उम्र का, वह कब सच्चा प्यार।।
देह रूप या रंग में, किसको कह दूँ अग्र।
सच तो यह है, तुम मुझे, सुन्दर लगी समग्र।।
अलग थलग होकर रहे, खुद को लिया समेट।
किंतु तुम्हारी नज़र ने, हमको लिया लपेट।।
तुमने बत्ती दी बुझा, जब हम हुए समीप।
लगा देव की नायिका, बुझा रही हो दीप।।
भरा रहा है प्रेम से, सतत आयु का कोष।
उससे मिली जिजीविषा, जीने का संतोष।।
उथली भावुकता भरा, सुख सपनों का ज्वार।
देहाकर्षण है महज, कच्ची वय का प्यार।।
सुन तो लेते हैं उन्हें, लोग न करते गौर।
जिनकी कथनी और है, लेकिन करनी और।।
गिनते हैं जब नोट सब, धन-अर्जन की होड़।
ऐसे मे कवि कर रहा, मात्राओं का जोड़।।
-चन्द्रसेन विराट
121, बैकुंठ धाम कॉलोनी, इन्दौर9329895540
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