नाहर हिंसक है बड़ा, सबका करे शिकार|
पर नर को मत आँकिए, उससे कम खूंखार||
करते नहीं हैं पंच भी, आज न्याय की बात|
सजा मिले निर्दोष को, हो चौतरफा घात||
बहुत सुना संसार से, है उसके घर न्याय|
वापस आ इस तथ्य को, देगा कौन बताय||
जगे रात भर प्यार में, तके चाँद की ओर|
मगर चाँद को क्या पता, सहता विरह चकोर||
एक तरफ के प्यार में, होता है यह हाल|
मरे पतंगा प्यार में, खुद को लौ में डाल||
बने बहाना मौत का, नहीं किसी का जोर|
आता काल सियार का, चले गाँव की ओर||
दोहे में गंगा बहे, बहती यमुना धार|
ज्यों-ज्यों यह आगे बढे, त्यों-त्यों हो विस्तार||
-मास्टर रामअवतार शर्मा
गुढ़ा (महेंद्रगढ़)
पर नर को मत आँकिए, उससे कम खूंखार||
करते नहीं हैं पंच भी, आज न्याय की बात|
सजा मिले निर्दोष को, हो चौतरफा घात||
बहुत सुना संसार से, है उसके घर न्याय|
वापस आ इस तथ्य को, देगा कौन बताय||
जगे रात भर प्यार में, तके चाँद की ओर|
मगर चाँद को क्या पता, सहता विरह चकोर||
एक तरफ के प्यार में, होता है यह हाल|
मरे पतंगा प्यार में, खुद को लौ में डाल||
बने बहाना मौत का, नहीं किसी का जोर|
आता काल सियार का, चले गाँव की ओर||
दोहे में गंगा बहे, बहती यमुना धार|
ज्यों-ज्यों यह आगे बढे, त्यों-त्यों हो विस्तार||
-मास्टर रामअवतार शर्मा
गुढ़ा (महेंद्रगढ़)
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