संगीत सुनाया सावन ने
नील गगन में मेघमाल को, न्योत बुलाया सावन ने।
ढोलक, झांझ, मंजीरा का, संगीत सुनाया सावन ने।
नदी, ताल, सरवर, पोखर को, नवजीवन का दान मिला।
इन्द्रधनुष के सात रंगों से, जीवन को नव गान मिला।।
तेज तपन से मुक्ति देकर, मन हरियाया सावन ने।
दादुर, मोर, पपीहे बोलें, चमकें जुगनू टिमटिम से।
त्यौहारों की बगिया में, फल-फूल लगाए रिमझिम के।।
भाग-दौड़ की धूप-छांव में, मन उमगाया सावन ने।
पुरवा पवन चले सावन में, घटा उठे काली घनघोर।
पुलकित होकर किलकें बालक, नाच उठे सबका मन-मोर।
खुशियों की किलकारी सुनकर, शीश उठाया सावन ने।
व्यथा-कथा का पन्ना-पन्ना, बांच रहे थे जितने जन।
गीत और संगीत सुनें तो, हर्षित होते सबके मन।
अम्मां जैसी थपकी देकर, थपक सुलाया सावन ने।
हरियाली की चूनर ओढ़़े, छटा अनोखी छाई है।
रूप अनूप धारकर धरती, मन ही मन इतराई है।।
अरमानों के झूले ऊपर, खूब झुलाया सावन ने।
-हरीन्द्र यादव, गुड़गाँव
ढोलक, झांझ, मंजीरा का, संगीत सुनाया सावन ने।
नदी, ताल, सरवर, पोखर को, नवजीवन का दान मिला।
इन्द्रधनुष के सात रंगों से, जीवन को नव गान मिला।।
तेज तपन से मुक्ति देकर, मन हरियाया सावन ने।
दादुर, मोर, पपीहे बोलें, चमकें जुगनू टिमटिम से।
त्यौहारों की बगिया में, फल-फूल लगाए रिमझिम के।।
भाग-दौड़ की धूप-छांव में, मन उमगाया सावन ने।
पुरवा पवन चले सावन में, घटा उठे काली घनघोर।
पुलकित होकर किलकें बालक, नाच उठे सबका मन-मोर।
खुशियों की किलकारी सुनकर, शीश उठाया सावन ने।
व्यथा-कथा का पन्ना-पन्ना, बांच रहे थे जितने जन।
गीत और संगीत सुनें तो, हर्षित होते सबके मन।
अम्मां जैसी थपकी देकर, थपक सुलाया सावन ने।
हरियाली की चूनर ओढ़़े, छटा अनोखी छाई है।
रूप अनूप धारकर धरती, मन ही मन इतराई है।।
अरमानों के झूले ऊपर, खूब झुलाया सावन ने।
-हरीन्द्र यादव, गुड़गाँव
No comments:
Post a Comment