लंकापति की नीचता, करते अब ता याद.
भुला दिया क्यों आपने, लक्ष्मण का अपराध.
कौरव ताक़तवर हुए, कायर हुआ समाज.
सरेआम लुटने लगी, द्रौपदियों की लाज.
नेताओं की दुष्टता, देख रहा है देश.
डाकू जैसा आचरण, संतों सा सन्देश.
फ़ैल रहा है झूठ का, पल-पल कारोबार.
झूठे मिलकर सत्य को, कर देते लाचार.
संसद में भी पड़ रहे, धन के बदले वोट.
कहें चोर को चोर तो, मर्यादा पर चोट.
दौलत उसके पास है, अपने पास जमीर.
वक़्त करेगा फैसला, सच्चा कौन अमीर.
सच के पथ पर जो चले, रहता खाली हाथ.
यादव फिर भी है खड़ा, सच्चाई के साथ.
गूंगा बहरा हो गया, जब से सभ्य समाज|
चौराहों पर लुट रही, अबलाओं की लाज||
गूंगा बहरा हो गया, जब से सभ्य समाज|
चौराहों पर लुट रही, अबलाओं की लाज||
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