कुछ दोहे आनेवाले दोहा संग्रह से
जिससे सच की आस थी, बैठ गया वो मौन.
साया भी बागी हुआ, वफ़ा करेगा कौन.
खुश था अपने गाँव में, करते थे सब प्यार.
देख रहा हूँ शहर में, नफ़रत का व्यापार.
छुड़ा दिया है भूख ने, मुझ से प्यारा गाँव.
साया भी बागी हुआ, वफ़ा करेगा कौन.
खुश था अपने गाँव में, करते थे सब प्यार.
देख रहा हूँ शहर में, नफ़रत का व्यापार.
छुड़ा दिया है भूख ने, मुझ से प्यारा गाँव.
भटक रहा हूँ शहर में, कहीं न सुख की छाँव.
मेल-जोल था गाँव में, सुख के थे दिन-रैन.
मेल-जोल था गाँव में, सुख के थे दिन-रैन.
रोटी देकर शहर ने, छीन लिया सुख-चैन.
अपने हक की बात कर, बैठा है क्यूँ मौन.
ताक़त को पहचान ले, तुझे छलेगा कौन.
दीप पर्व पर आपको, खुशियाँ मिलें अपार.
"यादव" दाता से करे, बार-बार मनुहार.
होड़ मची है लूट की, ज्यादा लूटे कौन ।
देश बना है द्रौपदी, हुए पितामह मौन॥
राजनीति में हो गई, चोरों की भरमार।
जनता को ही लूटते, जनता के सरदार॥
ताक़त को पहचान ले, तुझे छलेगा कौन.
दीप पर्व पर आपको, खुशियाँ मिलें अपार.
"यादव" दाता से करे, बार-बार मनुहार.
राजा जी लाचार हैं, जनता गूंगी गाय।
रहबर लूटें कारवाँ, ढूँढ़े कौन उपाय॥होड़ मची है लूट की, ज्यादा लूटे कौन ।
देश बना है द्रौपदी, हुए पितामह मौन॥
राजनीति में हो गई, चोरों की भरमार।
जनता को ही लूटते, जनता के सरदार॥
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