विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Wednesday, August 12, 2015

दस हाइकु - शैलेष गुप्त 'वीर'

बीता आषाढ़
मुदित है प्रकृति
पावस ऋतु।
2-
बहका मन
रिमझिम फुहारें
छुआ जो तन!
3-
पिया के बिन
हरी-भरी धरती
आहें भरती।
4-
सावन हँसा
सतरंगी हो गये
'दोनों' खो गये।
5-
हुई जो प्रात
कल की 'भीगी रात'
बात ही बात!
6-
मन-विभोर
छायी है हरियाली
मन ही चोर!
7-
आ मन नच
नदी-नौका-पर्वत
सपने सच।
8-
यादों के साये
'सीमा पर चौकसी'
सावन जाये।
9-
शिव को प्रिय
सावन का महीना
भक्ति में रमा।
10-
श्रद्धा में डूबे
चले हैं काँवरिया
जय भोले की!

-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
(अध्यक्ष-अन्वेषी संस्था) फतेहपुर (उ.प्र.)-212601
मो.- 9839942005, 8574006355
ईमेल- doctor_shailesh@rediffmail.com 

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