विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Monday, March 7, 2016

लघुकथा : बदलाव की बयार

रमेश जैसे ही पार्टी में पहँुचा देखा मामाजी भी आए हुए थे। रमेश को देखते ही मामाजी के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। लगता था वे उसी को ढूंढ रहे थे। उनके चेहरे पर अत्यंत आत्मीयता व प्रेम के भाव व्याप्त हो गए। अपनी आदत के अनुसार रमेश ने मामाजी को नमस्ते कहा और झुक कर पैर छूए। मामाजी ने अत्यंत स्नेह से रमेश की पीठ थपथपाई और घर के लोगों का हालचाल पूछा। वे रमेश को दूर लॉन के एक कोने में ले गए और देर तक वहीं एक मेज़ पर बैठकर खाते पीते रहे और बतियाते भी रहे। थोड़ी देर बाद मामाजी ने कहा, ‘‘रमेश अब तेरी वो पहले वाली मस्त चाल नहीं रही क्या बात है? अपनी सेहत का ध्यान रख और कोई परेशानी है तो हमें बता।’’
रमेश मामाजी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से हैरान था। पिछले सप्ताह ही जब एक अन्य फंक्शन में मामाजी से मुलाक़ात हुई थी तो मामाजी ने उसके अभिवादन का ठीक से जवाब भी नहीं दिया था। आज मामाजी के व्यवहार में इतना परिवर्तन क्यों? हो सकता है उस दिन किसी बात को लेकर परेशान हों या स्वास्थ्य ठीक न हो लेकिन उससे पहले भी कभी इतनी आत्मीयता नहीं दिखलाई मामाजी ने प्यार लुटाने की बात तो दूर। असल में जब से मामाजी ने नई कोठी बनवाई है और उसमें शिफ्ट किया है तब से उनका व्यवहार ही बदल गया है। रमेश से ही नहीं किसी भी रिश्तेदार से सीधे मुँह बात नहीं करते। मामाजी की उम्र भी काफी हो गई है लेकिन इस उम्र में भी राग-द्वेष कम नहीं हुआ है और अहंकार भी कम होने का नाम नहीं ले रहा है। लेकिन आज के उनके व्यवहार को देख कर लगता है कि उनका पुराना स्वभाव सचमुच बदल गया है। वे पिछली बातें भुलाकर सबसे प्रेम का नाता प्रगाढ़ करना चाहते हैं। अच्छी बात है। रमेश के मन में भी मामाजी के प्रति कुछ अतिरिक्त श्रद्धा और सम्मान उमड़ने लगा।
रमेश देर तक मामाजी के पास बैठा रहा और गपशप करता रहा। फिर मामाजी ने रमेश से पूछा, ‘‘रमेश आजकल तेरे ऑफिस के क्या हालचाल हैं?’’
‘‘बिल्कुल ठीक हैं मामाजी कोई काम हो तो बताना’’, रमेश ने कहा। 
‘‘ये तो तुझे पता ही है कि हमने एक इंडस्ट्रियल प्लॉट का रजिस्ट्रेशन करवा रखा है जो अभी तक नहीं निकला है और वो पिछले पते पर कराया था। उसका पता बदलवाना है’’, मामाजी सीधे काम की बात पर आ गए।‘‘ 
‘‘ये मैं करवा दूँगा बस आप एक एप्लीकेशन और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट तथा नये पते की पुष्टि के लिए किसी डॉक्यूमेंट की कॉपी लगा देना’’, रमेश ने मामाजी को आश्वस्त करते हुए कहा। 
मामाजी ने फ़ौरन जेब से एक लिफाफा निकाला जिसमें एप्लीकेशन के साथ ज़रूरी कागज़ात की कॉपियाँ लगी थीं और रमेश की ओर बढ़ा दिया। जैसे ही रमेश ने वो लिफाफा अपनी जेब में रखा मामाजी के चेहरे पर परम संतुष्टि के भाव उभर आए। लगता था जैसे उनका प्रयास सफल हो गया और आत्मीयता का प्रदर्शन भी निष्फल नहीं गया।

-सीताराम गुप्ता

ए.डी.-106-सी, पीतमपुरा,
दिल्ली-110034


No comments:

Post a Comment