जय चक्रवर्ती की गज़लें
लिखना मेरा शौक नहीं है ये मेरी मजबूरी हैअपनी आग बचाए रखने को ये बहुत ज़रूरी है
खामोशी जिनके होठों पर उनका स्वर बनकर उन तक
खुद को यदि पहुँचा पाऊँ तो समझो यात्रा पूरी है
सोचो, बीस दिनों तक उसके बच्चे क्या खाते होंगे
एक महीने में दस दिन मिलती जिसको मजदूरी है
संसद-वंसद आज़ादी-वाजादी तब तक बेमानी
कायम जब तक लोकतन्त्र की लोकतन्त्र से दूरी है
दिल का दर्द बताए कोई किसको ऐसे में कैसे
सूरज नादिरशाह हुआ है और हवा तैमूरी है
2
चोट कर अन्याय पर हरदम हथौड़ों की तरहया कि नंगी पीठ पर दस-बीस कोड़ों की तरह
रुक भी जा दो-चार पल कुछ सोच भी कुछ देख भी
ज़िंदगी - भर दौड़ता ही रह न घोड़ों की तरह
मुश्किलों की ही तरह कर मुश्किलों का सामना
मुश्किलों से भाग मत हरगिज़ भगोड़ों की तरह
तय करो, लाखों-करोड़ों मे बनोगे एक, या –
एक दिन मर जाओगे लाखों-करोड़ों की तरह
रख न पाये साथ यदि प्रतिरोध की चिनगारियाँ
रोज कुचले जाओगे कीड़ों –मकोड़ों की तरह
जो प्रथाएँ – मान्यताएं रोज डसतीं हों तुम्हें
काटकर फेंको उन्हें अब ज़र्द फोड़ों की तरह
3
ये जो झुक कर कमान हैं साहबदेश के ही किसान हैं साहब
एक मुँह, सौ बयान हैं साहब
आप कितने महान हैं साहब !
छिन गए घर हैं आजकल हमसे
आजकल तो मकान हैं साहब
हाथ खाली हैं पेट भी खाली
मुल्क के नौजवान हैं साहब
हुक्मराँ संविधान क्यों मानें
ये तो खुद संविधान हैं साहब
4
न डरता था न डरता हूँ किसी सेलड़ूँगा वक़्त की हर ज़्यादती से
मिला है दर्द इतना रोशनी से
मुहब्बत हो गई है तीरगी से
दिखाऊँगा उसे मैं ज़ख्म सारे
मिलूँ तो ज़िंदगी में ज़िंदगी से ?
हमारे पात बिछड़े फूल बिछड़े
हुए जब दूर हम अपनी ज़मी से .
दिये हैं घाव यूँ तो पत्थरों ने
सफर का सुख मगर पूछो नदी से .
किलक कर हँस रहा है एक बच्चा
खुशी कोई बड़ी है इस खुशी से ?
-एम.1/149, जवाहर विहार , रायबरेली -229010
मोब. 9839665691
e-mail: jai.chakrawarti@gmail.com
बेहतरीन गजलें , हार्दिक बधाई सर
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