विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Friday, March 2, 2018

मैं कैसे कह दूं : दयाल चंद जास्ट

कैसे कह दूं तुम्हें
कि 
मैं एक सफल व्यक्ति हूं
आज भी चल रहा हूं
उनके कहे अनुसार
जिनके आगे 
मैं सदियों तक चुप रहा 
मुझे मुंह खोलना था
उनके शोषण के खिलाफ
उनके अत्याचार के खिलाफ
जो मैंने पढ़े थे टाट पट्टी पर बैठकर
कई बार मुझे लगता है
कि मैं लोकतंत्र का हिस्सा नहीं हूं
बल्कि जैसे हिस्सा हूं दासतंत्र का
मैं आजादी के जश्न कलाकार हूं
लेकिन आजाद नहीं हूं
मैं गणतंत्र दिवस का फनकार हूं
लेकिन तंत्र मुझ पर हावी है
मैं मूल मतदाता हूं
लेकिन राजकाज से गायब हूं
मैं हूं देश का जवान
मैं हूं देश का किसान
मैं ही देश का श्रमिक
मैं हूं देश का आमजन
जिसका केवल प्रयोग हुआ है
मैं सफल व्यक्ति नहीं हूं
मैं सरहदों को जानता हूं
खेत-खलिहान को जानता हूं
मैं जानता हूं उस प्रत्येक सड़क को
जो संसद तक जाती है
लेकिन 
संसद में मुझे जाने नहीं दिया जाता
अगर मैं चला भी गया
तो मुझे मजबूर किया जाता है
यहां से जाने के लिए
मुझे नहीं है टुकड़े खाने की आदत
आज के 
कुछ सफल व्यक्ति अपने तक सफल हैं
वे नहीं चाहते लोगों की सफलता
वे नहीं चाहते कि समृद्ध हो लोकतंत्र
लोकतंत्र का मूल
तुम्ही बताओ 
मैं कैसे कह दूं
 कि 
मैं एक सफल व्यक्ति हूं।
 
-दयाल चंद जास्ट
गांव जोहड़ माजरा, तहसील-इन्द्री
जिला करनाल-हरियाणा, पिन कोड-132041
फोन नं-9466220146

1 comment:

  1. विविधा प्रकाशक मंडल ने मेरी रचना मैं कैसे कह दूं को प्रकाशित किया है।मैं उनका तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं।

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