विविधा

विविधा : हिंदी की साहित्यिक पत्रिका

Tuesday, June 7, 2016

प्यास सभी की एक - सतीश गुप्ता

रोटी ने पैदा किए, कोटि-कोटि जंजाल। 
भूख प्यास को ढूँढते, सूखा और अकाल।।
भूख रेत पर तप रही, प्यास तपे आकाश।
नज़र देखती शून्य में, टंगी स्वप्न की लाश।।
भूख सभी की एक सी, प्यास सभी की एक।
एक भूख के मायने, निकले सदा अनेक।।
रोटी सपने में मिले, इस नगरी की रीत।  
भूख प्यास हिल मिल रहें, करें परस्पर प्रीत।।
भूख रही है युद्धरत, वृद्ध हुई उम्मीद। 
फाका मस्ती में मने, दीवाली या ईद।।
बोझा ढोए उम्रभर, बिना सींग का बैल। 
टिका रहा है टेक पर, पुश्तैनी खपरैल।।
दूर बहुत होते गये, महलों से फुटपाथ।
निर्धनता की मित्रता, हर गरीब के साथ।।
झेली उसने हर समय, दुख दर्दों की मार।
फुटपाथों पर जि़न्दगी, सुख से रहा गुजार।।
पत्थर के बुत दे रहे, जीने का वरदान।   
भूखे प्यासे प्रार्थना, करें अकिंचन प्राण।।
जो न मरी वह भूख है, रहती तीनों काल। 
जो न बुझी वह प्यास है, सदा रहे बेहाल।।

-सतीश गुप्ता

के-221, यशोदा नगर, कानपुर
9793547629

उगे कैक्टस देश - होशियार सिंह 'शंबर'

निर्दोषों की खोपड़ी, रहे कसाई तोड़। 
क्रमिक योग कितना हुआ, रहे आँकड़े जोड़।।

दोहा छंद सुहावना, गाये लय अरु ताल।
गाया जो सकता नहीं, उठता वहीं सवाल।।

पत्नी की बातें सुनी, तुलसी त्यागी गेह।
तपकर रामायण लिखी, जगत सिखायी नेह।।

बोये बीज गुलाब के, उगे कैक्टस देश।  
उठो उखाड़ो मूल को, यह कवि का संदेश।।

हरिजन वह जो हरि भजे, हरिजन के हैं राम।
माँ के वर आशीष से, मैं तो राम गुलाम।।

तीरथ सुख की कल्पना, पूरे हो सब काम।
मात-पिता, गुरु देवता, चारों तीरथ धाम।।

गीत, $गज़ल अरु दोहरे, लोकगीत अरु छंद।
कविता रचना में सदा, है स्वॢगक आनन्द।।

अर्पित जीवन कर दिया, जग पूरा विश्वास।
खोजे भी दुर्लभ रहे, ऐसे रत्न सुभाष।।

खड्डी पर कपड़ा बुने, कपड़ा नहीं शरीर।
रामदास बीजक गढ़े, गाते रहे कबीर।।

शब्द साधना से सजें, देते अर्थ सटीक।
 चरण तोड़ मत फेंकिये, नहीं पान की पीक।।

-होशियार सिंह 'शंबर'

द्वारा श्री देवेन्द्र सिंह  'देव' एडवोकेट              
1376, गली नं. 2, शास्त्री नगर, बुलंदशहर

चढ़ा नहीं अभिमान - शिवकुमार 'दीपक'

सदाचार की चोटियाँ, चढ़ा नहीं अभिमान।
झुककर चलता जो पथिक, चढ़ जाता चट्टान।
मन ही मन मुस्का रहे, नीर भरे तालाब।
जीवन लेकर आ रहा, लहरों का सैलाब।।
कपी रात भर झोंपड़ी, गर्म रहे प्रासाद। 
ठिठुर ठिठुर दुखिया करे, जाड़े का अनुवाद।।
कड़वी बातें साँच की, बोले जो इन्सान।     
तन जाते उस शख्स पर, चाकू, तीर कमान।।
आँगन में तुलसी जली, धूप सकी ना झेल।
इक तुलसी ससुराल में, जली छिडक़कर तेल।
गई सभ्यता गर्त में, छूट गए संस्कार।  
सबसे घातक देश में, नैतिक भ्रष्टाचार।।
राणा की सुन वीरता, खुलती आँखें बन्द। 
राणा बन सकते नहीं, मत बनिए जयचन्द।।
कोठी वाले गेट पर, खड़ा मिला इन्सान।
लेकिन ऊँची कोठियाँ, बेच चुकी ईमान।।
बटवारा घर में हुआ, बँटा माल, घर, द्वार।
उनको धन दौलत मिली, मुझको माँ का प्यार।
की अगुवानी महल ने, हुआ हास परिहास।
लगे छलकने शिशिर में, मदिरा भरे गिलास।।

-शिवकुमार 'दीपक'

बहरदाई, सहपऊ, हाथरस
9927009967

सर्द रात अखबार पर - अशोक 'आनन'

ओढ़ रजाई धुंध की, रख सिरहाने हाथ।   
सर्द रात अखबार पर, लेटी है फुटपाथ।।
बाँच रही है धुंध का, सुबह लेट अ$खबार। 
रात ठंड से मर गए, दीन-हीन लाचार।।
एक दीप तुम प्यार का, रखना दिल के द्वार।
यही दीप का अर्थ है, यही पर्व का सार।।
झाँके घूँघट ओट से, हौले से कचनार।   
भँवरे करते प्यार से, चुम्बन की बौछार।।
खुशियों के $खत बाँटता, आया पावस द्वार।
मुझे विरह की दे गया, पाती अबकी बार।।
जादू-टोना कर गई, सावन की बौछार।
काजल भी नज़रा गया, साजन अबकी बार।।
मुझको पावस दे गया, आँसू की सौगात।
सजकर निकली आँख से, बूँदों की बारात।।
बस्ती-बस्ती $खौफ है, घर-घर आदमखोर।
जान बचाकर आदमी, अब जाए किस ओर।।
बंद मिलीं ये खिड़कियाँ, बंद मिले सब द्वार।
अब तो सारा शहर है, दहशत से बीमार।।
गए प्रीत के डालकर, झूले मन की शाख।
चुरा रहे क्यों आज तुम, साजन मुझसे आँख।।

-अशोक 'आनन'

61/1, जूना बाज़ार, मक्सी, शाजापुर
9977644232

सद्गुण का अपमान - शैलजा नरहरि

हाथ पाँव चलते रहें, चलता रहे शरीर।      
ये मदिर सी देह ही, तेरी है ज़ागीर।।

अम्मा है घर की हँसी, अम्मा से घर बार।
अम्मा बजता साज है, कसा हुआ हर तार।।

मौलसिरी हँसती रही, मुरझा गए कनेर।
चकला बेलन पूछते, कैसे हो गई देर।।

कागज पीले हो गए, ताजे फिर भी बोल। 
प्यार प्रीत की चि_ियाँ, जब चाहे तब खोल।।

बहुत बड़ा दिल चाहिए, करने को गुणगान।
अकसर ओछों ने किया, सद्गुण का अपमान।

खण्ड-खण्ड उत्तर हुए, प्रश्न रह गए मौन।
जब आहत हैं देवता, उत्तर देगा कौन।।

साँसे जब तक साथ थीं, सब ने बाँटी प्रीत। 
धू-धू जलता छोडक़र, लौट गए सब मीत।।

छोटे-बड़े न देवता, छोटी बड़ी न रीत।     
घर बैठे भगवान से, करके देखो प्रीत।।

क्या मैं सबको बाँट दूँ, क्या मैं रक्खूँ पास। 
इस दुनिया ने जानकर, तोड़ा हर विश्वास।।

माँग भरी, आँखें भरी, भरे चूडिय़ों हाथ। 
साजन की देहरी मिली, छूटा सबका साथ।।

-शैलजा नरहरि

आर्किड -एच, वैली ऑफ क्लावर्स
ठाकुर विलेज, कांदिवली (पूर्वी), मुंबई-400101